बांग्लादेश (Bangladesh) की राजधानी ढाका में रविवार को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर पाकिस्तान (Pakistan) का विरोध हुआ है. इस दौरान साइकिल रैली और सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें शामिल होने वाले लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन और बंगला भाषा को दबाने में पाकिस्तान की भूमिका को याद किया.
बांग्लादेश सोशल एक्टिविस्ट्स फोरम (BSAF), देश के राष्ट्रवादी आंदोलन की नीव रखने वाले एक प्रमुख गैर सरकारी संगठन, ने देश के विभिन्न हिस्सों में बैठकें कीं और जुलूस निकाले. वक्ताओं ने बंगाली राष्ट्रीय आंदोलन में जान गंवाने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि दी और बंगाली राष्ट्रीय आंदोलन और बांग्लादेश (Bangladesh) के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तानी (Pakistan) हुक्मरानों के कड़े शासन की आलोचना की. ढाका में, BSAF के स्वयंसेवकों ने ढाका सेंट्रल शहीद मीनार में पुष्पांजलि अर्पित की, जिसके बाद ढाका विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संग्रहालय होते हुए लोगों ने रैली निकाली. इस समारोह में स्वतंत्रता सेनानियों, बुद्धिजीवियों, विद्वानों आदि ने भाग लिया.
रैली के दौरान, 1952 में बंगाली भाषा के आंदोलन को दबाने के क्रूर प्रयास के लिए पाकिस्तान की निंदा करने वाले पोस्टर प्रदर्शित किए गए. अपने संबोधन में, वक्ताओं ने बंगाली लोगों पर पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों को न भूलने का संकल्प लिया. वक्ताओं ने अपने संबोधन में ‘सिर्फ उर्दू’ वाली नीति के माध्यम से बंगला भाषा और संस्कृति को छीनने की पाकिस्तान की बुरी मंशा को याद किया, जिसका स्वतंत्रता-प्रेमी बंगाली आबादी ने विरोध किया था. वक्ताओं ने याद किया कि बांग्लादेश को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तान के बुरे डिजाइन बेरोकटोक और अभी भी विभिन्न रूपों में जारी हैं. उन्होंने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का विरोध करने का संकल्प लिया और देश की आजादी की लड़ाई और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़ना जारी रखा.
भारत- बांग्लादेश समरसता संघ (BBSS) वेलफेयर एसोसिएशन ने साइकिल रैली का आयोजन किया. संगठन के अध्यक्ष तौफीक अहमद तसफिर के नेतृत्व में रैली में लगभग 135 लोगों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए, वक्ताओं ने कहा कि निर्दोष बांग्लादेशियों की पाकिस्तानी बलों द्वारा प्रताड़ना की गई. वे बंगाली लोगों की बोलने की स्वतंत्रता को दबा देना चाहते थे/ उन्होंने कहा, ‘हम पाकिस्तान को माफ नहीं करेंगे जिन्होंने मातृभाषा में बोलने के लिए एक मां की गोद खाली कर दी. जिन्हें अपनी बांग्ला भाषा स्वीकार नहीं की, वे हमारे दोस्त नहीं हो सकते.’