संघर्षविराम समझौते का पालन स्वागत योग्य है, क्योंकि यह न केवल सीमा क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों और नागरिकों के जीवन की अनावश्यक क्षति को रोकेगा, बल्कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को कुछ सामान्य स्थिति में लाने के लिए प्रोत्साहन भी दे सकता है.
भारत और पाकिस्तान (India Pakistan) ने नियंत्रण रेखा (LoC) समेत अन्य क्षेत्रों में संघर्ष विराम संबंधी (Ceasefire Pact) सभी समझौतों का सख्ती से पालन करने पर 25 फरवरी को सहमति जताई है. यह सहमति दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMO) के बीच बातचीत के बाद बनी है. दोनों देश 24-25 फरवरी की मध्यरात्रि से नियंत्रण रेखा व सभी अन्य क्षेत्रों में संघर्ष विराम समझौतों, आपसी सहमतियों का सख्ती से पालन करने पर राजी हुए. संयुक्त बयान में कहा गया कि सीमाओं पर दोनों देशों के लिए लाभकारी और स्थायी
शांति स्थापित करने के लिए डीजीएमओ ने उन अहम चिंताओं को दूर करने पर सहमति जताई, जिनसे शांति बाधित हो सकती है व हिंसा हो सकती है.
संघर्षविराम समझौते का पालन स्वागत योग्य है, क्योंकि यह न केवल सीमा क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों और नागरिकों के जीवन की अनावश्यक क्षति को रोकेगा, बल्कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को कुछ सामान्य स्थिति में लाने के लिए प्रोत्साहन भी दे सकता है. लगातार बिगड़ते संबंधों के बाद इस दोस्ती को बढ़ावा कैसे मिला? मैं कहूंगा कि यह रणनीतिक वास्तविकता का प्रभाव है. लगातार जारी दुश्मनी रणनीतिक उद्देश्य को परोस रही है. खासकर पाकिस्तान के लिए और कहीं हद तक भारत के लिए भी.
नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर आक्रामकता भारत-पाकिस्तान संबंधों की स्थिति को दर्शाती है. जहां कुछ साल से संबंध बिगड़ रहे थे. वहीं जम्मू-कश्मीर पर भारत के 5 अगस्त, 2019 के फैसले के बाद इसमें और गहराई आ गई थी. पाकिस्तान ने बेवजह जख्मी अंदाज में प्रतिक्रिया दी और कूटनीतिक तौर पर आक्रामक हो गया था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर एजेंडे को उछालकर पाकिस्तान ने सऊदी अरब और यूएई जैसे अपने पारंपरिक दोस्तों के साथ अपने संबंधों को नुकसान पहुंचाया.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को खराब कर लिया था. पाकिस्तान को चीन और रूस गठबंधन का हिस्सा माना जा रहा था. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की गलत छवि पेश करने की कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान लगातार फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसे संस्थानों के दबाव में था.
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते की सफलता दो कारकों पर निर्भर करेगी. पहला है- क्या दोनों देश इसे तात्कालिक चुनौतियों का इलाज करने या संबंधों को सुधारने के अग्रदूत के रूप में देखते हैं. अगर यह हाल का है तो सीमा पर गोलीबारी को नियंत्रित किया जाएगा ताकि सीमा पर होने वाली घटनाएं पूरे वातावरण को न बिगाड़ें. इसमें दूसरा कारक यह है कि दोनों देश यह तय करें कि अपनी विदेश नीति को घरेलू राजनीति द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने से वे सफलतापूर्व कैसे रोक सकते हैं. शायद यह अधिक कठिन चुनौती है.