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महाकुंभ में शैव संप्रदाय के अखाड़ों में नागा संतो के साथ ही जंगम साधु भी आए हुए हैं, बने आकर्षण का केंद्र

प्रयागराज
प्रयागराज महाकुंभ में शैव संप्रदाय के अखाड़ों में नागा संतो के साथ ही जंगम साधु भी आए हुए हैं. अपनी अलग वेशभूषा और गीतों के जरिए खास अंदाज में भगवान शिव व माता पार्वती का स्तुति गान करने वाले यह जंगम साधु महाकुंभ में लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. यह जंगम साधु खुद को सन्यासी परंपरा के अखाड़ों का पुरोहित बताते हैं और खास वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हुए भोलेनाथ की भक्ति का गीत गाकर नागा संन्यासियों से भिक्षा लेते हैं.

महाकुंभ में हरियाणा समेत अन्य राज्यों से आए हुए जंगम साधुओं की टोली अपनी अनूठी वेशभूषा के चलते श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. इन जंगम साधुओं की पगड़ी पर बड़े आकार का मोर पंख लगा होता है. कहा जाता है कि यह मोर पंख सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का प्रतीक होता है. भगवान शिव के प्रति के तौर पर पगड़ी के अगले हिस्से में सिल्वर के नागराज विराजमान रहते हैं. माता पार्वती के आभूषणों के प्रतीक के तौर पर यह घंटी और बाली भी पहने रहते हैं. यह पांच देवी देवताओं के पांच प्रतीकों को धारण किए रहते हैं.

भोलेनाथ का गुणगान करते हुए जीवन यापन करते हैं जंगम साधु
यह जंगम साधु अनूठे वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हुए भगवान भोलेनाथ पर आधारित विशेष गीतों व भजनों को गाते हुए चलते हैं. इनके भजन में शिव विवाह कथा, कलयुग की कथा और शिव पुराण होता है. इनका मुख्य काम भगवान भोलेनाथ की महिमा का गुणगान करते हुए दान स्वरूप मिले हुए पैसों व सामग्रियों से जीवन यापन करना होता है. यह एक बार चलते हैं तो कहीं रुकते नहीं हैं. इनके वाद्य यंत्रों और गीतों की आवाज सुनकर नागा संन्यासी खुद ही कैंप के बाहर आते हैं और इन्हें दान देते हैं. यह कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते. जंगम साधुओं को देखने और उन्हें सुनने के लिए महाकुंभ में लोगों की भीड़ जुटी रहती है. जंगम साधु ब्राह्मण समुदाय के होते हैं. परंपराओं के मुताबिक यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ लोग ही करते हैं. बाहरी लोग जंगम साधु नहीं बन सकते हैं. जंगम साधु सिर्फ कुंभ और महाकुंभ में ही आते हैं. पुरोहित होने के नाते यह नागा संन्यासियों से दक्षिणा लेते हैं.

उड़ीसा से प्रयागराज पैदल चलकर आए स्वामी महेश गिरी  साधु
जंगम साधुओं के साथ ही महाकुंभ में उड़ीसा से आए हुए एक नागा संत अपने अनूठे वाद्य यंत्र की वजह से सुर्खियों में है. स्वामी महेश गिरि नाम के यह साधु उड़ीसा का वाद्य यंत्र घुड़की अपने साथ लेकर आए हैं. इसकी धुन बेहद मनमोहक होती हैं. स्वामी महेश गिरि घुड़की को बजाते हुए उड़िया भाषा में गीत भी सुनाते हैं. वह हिंदी नहीं बोल पाते, लेकिन उनके उड़िया गीत और घुड़की वाद्य यंत्र की धुन बरबस ही लोगों का मन मोह लेती है. यह बाबा उड़ीसा से पैदल चलकर प्रयागराज आए हुए हैं.

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