मध्यप्रदेश

कोर्ट ने मुख्य सचिव और जिला कलेक्टरों को कहा वे कानून के वास्तविक इरादे और मतलब को समझे बिना राजनीतिक दबाव में आकर आदेश पारित न करें

जबलपुर

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को सभी जिला कलेक्टरों को यह निर्देश देने को कहा है वे कानून के वास्तविक इरादे और मतलब को समझे बिना राजनीतिक दबाव में आकर आदेश पारित न करें। इसके साथ ही अदालत ने बुरहानपुर जिले के वन अधिकार कार्यकर्ता को निष्कासित किए जाने को अवैध करार दिया है। साथ ही सरकार पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया।

20 जनवरी को पारित और गुरुवार को अपलोड किए गए आदेश में, जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकल पीठ को निष्कासन आदेश में कई कानूनी विसंगतियां मिली, जिसमें यह भी शामिल है कि गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि केस का पंजीकरण निष्कासन का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी बुरहानपुर के जागृत आदिवासी दलित संगठन के कार्यकर्ता अनंतराम अवासे की याचिका पर की।

अनंतराम 23 जनवरी, 2024 को बुरहानपुर के कलेक्टर द्वारा पारित वनों की कटाई के आदेश के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। जिसके बाद कलेक्टर ने उन्हें एक साल के लिए जिले से निष्कासित (जिला बदर) कर दिया था। याचिकाकर्ता के वकील प्रियाल सूर्यवंशी ने कहा, 'निष्कासन की अवधि 22 जनवरी, 2025 को समाप्त हो गई, लेकिन याचिकाकर्ता ने जोर देते हुए कहा कि निष्कासन की जांच उसके गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि जिला मजिस्ट्रेट बुरहानपुर अपने अधिकार से बाहर जाकर काम कर रहे थे और कानून के बजाय बाहरी विचारों से प्रभावित थे।'

अवासे पर 2018 से 2023 के बीच वन अधिनियम के तहत बिना अनुमति के वन उपज का उपयोग करने और पेड़ों को काटने जैसे 11 अपराधों को लेकर मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद, साल 2019 में भारतीय दंड संहिता के तहत दंगा करने का मामला दर्ज किया गया। 2022 में उनके खिलाफ हत्या के प्रयास और एक सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्यों का पालन करने से रोकने का एक और मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि इस बात को साबित करने को लेकर कोई बयान दर्ज नहीं किया गया की कैसे इससे सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को कैसे खतरा हो रहा है।

याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए राज्य सरकार पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए अदालत ने कहा, 'दो बातें बिल्कुल साफ हैं। पहली बात, जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश में वन अपराधों का उल्लेख बिना किसी प्रासंगिकता के किया गया है, क्योंकि वन अपराध सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं। दूसरी बात, इस्तेमाल किया गया शब्द है 'अगर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है' – लेकिन रिकॉर्ड पर यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि भारतीय दंड संहिता के तहत दो अपराधों (2019 और 2022 में पंजीकृत) के संबंध में याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया है।'

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