मध्यप्रदेश

कचरे के निपटान को लेकर चल रही समस्या का मिला स्थायी समाधान ! अब बनेगी बिजली

ग्वालियर

भारतीय शहर वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े कचरा उत्पादकों में से हैं, जो सालाना लगभग 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करते हैं. लगभग 43 मिलियन टन (70%) एकत्र किया जाता है, लगभग 12 मिलियन का उपचार किया जाता है, और 31 मिलियन टन लैंडफिल साइटों पर निपटाया जाता है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुमान बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 160,000 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग 150,000 मीट्रिक टन प्रतिदिन एकत्र किया जाता है. इस कुल कचरे में से लगभग 50% कचरे का उपचार किया जाता है, जबकि 18% कचरे को लैंडफिल में फेंक दिया जाता है. भारत एक ऐसे चरण में पहुंच गया है जहां उसे लगातार बढ़ते लैंडफिल से कचरे को हटाने के लिए संधारणीय रणनीतियों के लक्ष्य को पूरा करना होगा.

पिछले एक दशक से कचरे के निपटान को लेकर चल रही समस्या का जल्द ही स्थायी समाधान हो जाएगा। इसके लिए निगम ने तैयारी शुरू कर दी है। केदारपुर लैंडफिल साइट पर भविष्य में घर, संस्थानों सहित बाजारों से निकलने वाले कचरे का उपयोग बिजली और बायो सीएनजी बनाने में होगा।

यहां पर रोज औसतन 55%सूखा और 45% गीला कचरा ​पहुंचता है। वर्तमान में औसतन 450-550 टन कचरा पहुंच रहा है। इस कचरे के निपटान के लिए निगम ने प्रदेश शासन को संशोधित डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) पहुंचाई है। उसमें 4 के स्थान पर 6मेगावाट बिजली बनाना शामिल है।

बिजली उत्पादन के लिए लगने वाली मशीन पर 110 करोड़ की राशि खर्च होगी। शासन से स्वीकृति आने पर एमआईसी से प्रस्ताव पारित होने के बाद टेंडर प्रक्रिया शुरू होगी। निगम ने 2015 को ईको ग्रीन कंपनी को 254 करोड़ रुपए का ठेका दिया था। 21 साल तक कंपनी को काम करना था। इसमें शहर से कलेक्शन पर 1701 रुपए प्रतिटन दिया जा रहा था। लेकिन कंपनी काम नहीं कर सकी। निगम ने 2021 में काम अपने हाथ में लिया था।

बायो सीएनजी प्लांट: रोज बनेगी 10 टन गैस, 335 टन गीला कचरा रोज चाहिए निगम ने पूर्व में बायो सीएनजी प्लांट बनाने की डीपीआर शासन को पहुंचाई थी। वहां से शासन से 75 करोड़ रुपए की डीपीआर को स्वीकृति प्रदान कर दी है। उक्त राशि से दो प्लांट लगेंगे। पहला बायो सीएनजी प्लांट और दूसरा सूखा कचरा प्रोसेस प्लांट लगाया जाएगा। 335 टन प्रति​दिन (टीपीडी) कचरे से गैस बनाई जाएगी। इसके लिए निगम को 335 टन गीला कचरा प्रतिदिन चाहिए होगा। इसके साथ ही 227 टीपीडी सूखे कचरे की जरूरत होगी।

केदारपुर साइट पर आता है रोजाना 450-550 कचरा

निगम के केदारपुर साइट पर रोजाना 450 से 550 टन कचरा आता है। अभी यहां सूखे कचरे के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगा है। उसमें निकलने वाली प्लास्टिक, पॉलीथिन सहित अन्य ठोस पदार्थ का कचरा निकलेगा। इसका उपयोग कर 6 मेगावाट बिजली बनाई जाएगी। इसका उपयोग तीनों प्लांट के संचालन में खर्च होने वाली बिजली के अलावा अन्य कामों में किया जा सकेगा। निगम ने पहले 4मेगावाट बिजली प्लांट का प्रस्ताव दिया था। अब इसे बढ़ाकर 6 मेगावाट कर दिया है।

केदारपुर में छह लाख टन से ज्यादा कचरा, बन गए हैं पहाड़ केदारपुर लैंडफिर साइट पर निगम ने 6 लाख टन कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटाने के लिए 33 करोड़ रुपए में कंपनी को काम दे रखा है। कंपनी 3.60 लाख मिट्रिक टन कचरे का निष्पादन कर चुकी है। इसके बाद भी यहां कचरे के पहाड़ खत्म नहीं हुए हैं। निगम ने इसका अनुमान कर रिपोर्ट तैयार की। उस आधार पर 3.50 लाख टन कचरा हो रहा है। इस पर 22.50 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। इसको निपटाने के लिए 22.50 करोड़ खर्च होंगे। इसका प्रस्ताव भी शासन को गया है।

स्वीकृति मिलते ही आगे काम जल्द शुरू होगा अभी छह मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए डीपीआर शासन को पहुंचाई है। उम्मीद है कि जल्दी ही स्वीकृति मिल जाएगी। बायो सीएनजी प्लांट की डीपीआर को पहले ही स्वीकृति मिल चुकी है। दोनों पर आगे जल्दी काम शुरू होगा। प्लांट लगने के बाद कचरे से बिजली, बायो सीएनजी बनने लगेगी। साथ ही कचरे के पहाड़ भी खत्म होंगे। -अमन वैष्णव, आयुक्त ननि

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