मॉल में पट्टे पर दुकानें देने में मदद करने वाले सलाहकारों के मुताबिक साल की पहली तिमाही में बड़े शहरों में mall के किराये 40-50 फीसदी तक घटे हैं. आगे इनमें और ज्यादा गिरावट के आसार हैं. पिछले एक दशक में किराये (rent) में यह सबसे तेज गिरावट बताई जा रही है.
राजस्व हिस्सेदारी के नए मॉडल से घटे किराये
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, मॉल प्रबंधन और सलाहकार कंपनी बियॉन्ड स्क्वैरफीट के संस्थापक सुशील एस डूंगरवाल बताते हैं, ‘ज्यादातर मॉल ने न्यूनतम गारंटी की जगह शुद्ध राजस्व हिस्सेदारी मॉडल अपना लिया है. इससे डेवलपरों को मिलने वाला असल किराया covid महामारी से पहले के मुकाबले 40-50 फीसदी कम हो गया है.’
न्यूनतम गारंटी का मतलब यह है कि मॉल में दुकान लेने वाले का कारोबार कम हो या ज्यादा, उसे मॉल डेवलपर को एक तय किराया ही देना होगा. राजस्व हिस्सेदारी मॉडल में दुकानदार को अपनी कमाई मॉल डेवलपर के साथ बांटनी पड़ती है. अनिश्चित और अप्रत्याशित माहौल के कारण न्यूनतम गारंटी के बजाय राजस्व हिस्सेदारी मॉडल अपना लिया गया. ताकि कारोबार चलता रहे.
बड़े शहरों में ज्यादा घटा किराया
डूंगरवाल ने बताया कि बेंगलूरु, मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में एक जैसा असर दिखा है. उन्होंने यह बताया कि मॉल का किराया प्रमुख बाजारों के किराये से भी अधिक घटा है. ऐनारॉक रिटेल ने हाल ही में कहा था कि 2021 की पहली तिमाही में दिल्ली के खान मार्केट में औसत मासिक किराया 2020 की पहली तिमाही के मुकाबले 8 से 17 फीसदी तक घटा है. मुंबई के प्रमुख बाजारों में भी किराया 5 से 10 फीसदी लुढ़का है.
मुंबई के एक अन्य सलाहकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मौजूदा हालात के कारण मॉल स्टोर मालिकों को 6 से 12 महीने यानी पहले से लंबी अवधि की राजस्व हिस्सेदारी का विकल्प दे रहे हैं. उस सलाहकार ने कहा, ‘महामारी से पहले राजस्व हिस्सेदारी की अवधि तीन से चार महीने होती थी. अब राजस्व हिस्सेदारी का ही रास्ता बचा है.
किराया माफी को लेकर सभी पक्ष एकमत नहीं
पिछले लॉकडाउन में ज्यादातर मॉल मालिकों ने अपने किरायेदारों का किराया माफ कर दिया था. मगर इस बार राय बंटी हुई है. कुछ किराया छोडऩे की योजना बना रहे हैं और दूसरे इसके लिए तैयार नहीं हैं. उदाहरण के लिए एनसीआर की एक प्रमुख मॉल डेवलपर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अप्रैल और मई या लॉकडाउन तक का किराया माफ करने पर विचार चल रहा है.