महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MNREGA) में हो रहे कामकाज के बीच एक नया संकट खड़ा हो गया है। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल पा रही है। उन्हीं के साथ काम किए हुए दूसरे वर्ग के मजदूरों काे भुगतान हो जा रहा है। इसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की फजीहत हो रही है। अब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर समस्या का समाधान करने का आग्रह किया है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों का कहना है, मनरेगा मजदूरों का भुगतान एक नोडल खाते से NEFMS के जरिए होता है। केंद्र सरकार ने एक आदेश जारी कर 1 अप्रैल 2021 से मजदूरी भुगतान के लिए रुपए को सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए अलग-अलग जारी करने की व्यवस्था बना दी। इसके बाद राज्य सरकार ने इन वर्गों के लिए दो अलग-अलग खाते खोले। अब बैंकों का कहना है कि नए खाते की वजह से अभी PFMS मैपिंग का काम चल रहा है। इसलिए इस मद में राशि प्राप्त होने के बाद भी क्रेडिट नहीं हो पा रहा है। बैंक ने बताया है कि मैपिंग का कार्य 14 मई तक पूरा कर लिया जाएगा। सरकारी नीतियों के बीच लॉकडाउन में रोजगार तलाश रही बड़ी आबादी काम करने के बाद भी मजदूरी के लिए भटक रही है।
127 करोड़ रुपए मिले लेकिन बंट नहीं पाए
अधिकारियों ने बताया, अनुसूचित जाति के श्रमिकों के लिए 5 मई को 5 करोड़ 26 लाख रुपए मिले हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति वर्ग के श्रमिकों के लिए 11 मई 2021 को 122 करोड़ 9 लाख रुपए की रकम आई है। लेकिन यह पैसा मनरेगा में पसीना बहाने वालों को मिल नहीं पाया है। वहीं 26 अप्रैल को सामान्य वर्ग के लिए आए 241 करोड़ 80 लाख रुपए में से बड़े हिस्से का भुगतान जारी है।
केंद्र सरकार स्तर पर भी देरी की बात
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों ने बताया, इस संबंध में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अवर सचिव से चर्चा हुई है। उनके द्वारा बताया गया कि मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया में वर्गवार भुगतान संबधी परिवर्तन के कारण ग्रामीण विकास मंत्रालय स्तर पर राज्यों हेतु नामित DDO को एक दिन में ही बहुत अधिक FTO पर डिजिटल हस्ताक्षर करने पड़ रहे हैं। लॉकडाउन के कारण उन्हें यह कार्य सीमित संसाधनों के साथ घर से करना पड़ रहा है, इसलिए इसमें अधिक समय लग रहा है।