एक तरफ तो पाकिस्तान फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे-लिस्ट से निकलने की बातें करता है, तो दूसरी तरफ कुछ ऐसी हरकतें कर देता है जिससे उसकी कोशिश बेकार हो जाती है. दरअसल, हाल ही में FATF ने उसे ग्रे-लिस्ट से निकालने की बजाय उसी में रखा है, जिसके बाद पाकिस्तान ने कहा था कि वह FATF के एक्शन प्लान पर 12 महीनों के अंदर काम करेगा. लेकिन अब भी पाकिस्तान अपनी ‘आतंकी गतिविधियों’ को बंद करने के बजाय नई-नई चालें चल रहा है. वह अपने सबसे कट्टर धार्मिक आतंकी संगठन को राजनीति की मुख्यधारा में लाने की तैयारी कर रहा है.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि इमरान सरकार ने अब धार्मिक कट्टरपंथी समूहों को मुख्यधारा की राजनीति में शामिल करने के विचार को स्वीकार कर लिया है. इमरान खान की सरकार को सबसे पहले ऐसा करने की सलाह देश की खुफिया एजेंसी ISI ने सलाह दी थी. सिर्फ इतना ही नहीं, 2017 में आतंकी हाफिज सईद के जमात-उद-दावा गुट ने मिल्ली मुस्लिम लीग का गठन किया था. हालांकि, इस गुट को जनता की तरफ से ज्यादा रिस्पांस नहीं मिला. वहीं, मिल्ली मुस्लिम लीग को पाकिस्तान चुनाव आयोग में अपना रजिस्ट्रेशन करवाने में परेशानी हो रही है. इस गुट को 2018 के आम चुनावों में भाग लेने से प्रतिबंधित भी कर दिया गया था. माना जा रहा है कि इमरान इसे मुख्यधारा में ला सकते हैं.
मिल्ली मुस्लिम लीग जमात-उद-दावा की आतंकवादी विचारधारा को त्यागे बिना बनाया गया था. एक विश्लेषक नज़रूल इस्लाम ने कहा कि आतंकवादी समूहों के एकीकरण को एक कदम के रूप में नहीं बल्कि एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए. आतंकवादी धार्मिक समूहों की चरमपंथी विचारधारा को मुख्यधारा की राजनीति में शामिल करने से पहले उन्हें छोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए. मौजूदा स्थिति में यह प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है.