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महामारी में पुश्तैनी गहने बेचने को मजबूर हुए लोग, बाजार में खरीदारों से ज्यादा बेचने वालों की भीड़

कोरोना महामारी ने आम से लेकर खास सभी की आर्थिक हालत तंग कर दी। बेरोजगारी और सख्त पाबंदियों से आमदनी लगातार घटी, लेकिन महंगाई ने खर्च बढ़ा दिए। कई लोगों के लिए तो घर चलाने के लाले पड़ गए। ऐसे में घर में रखा सोना उनका सहारा बना।

आर्थिक तंगी की मार झेल रहे लोगों ने अपने खानदानी गहनों तक को बेचकर अपना घर चलाया। ऐसे में बाजार में सोने के खरीदार कम और बेचने वालों की भीड़ ज्यादा दिखी। ज्वैलर्स ये भी कह रहे हैं कि सोने-चांदी की कीमतें बढ़ने से भी ज्वैलरी की बिक्री बढ़ी है।

इसी ट्रेंड को समझने के लिए हमने देश के 3 प्रमुख सर्राफा बाजारों से ग्राउंड रिपोर्ट की, जिसमें रतलाम, इंदौर और जयपुर शामिल हैं…

शहर के सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि पहले लोग एक्सचेंज के लिए पुराना सोना बेचने आते थे, लेकिन अब जरूरत के लिए बेच रहे हैं। ट्रेंड ऐसा बदला है कि सोना बेचने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। जौहरी बाजार में जे.एम. ज्वैलर्स के मालिक अनिल कुमार सेवानी ने बताया कि पहले रोजाना दो से तीन ग्राहक सोना बेचने आते थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर चार से छह हो गई है।

उन्होंने बताया कि पहले ज्यादातर ग्राहक ऐसे थे जो पुरानी गोल्ड ज्वैलरी बेचकर शादी-ब्याह के लिए नया सोना खरीदते थे, लेकिन कोरोना के बाद जरूरतमंद लोग सोना बेचने आ रहे हैं। नौकरी जाने और बिजनेस ठप पड़ने से सबकी आर्थिक हालत पहले जैसी नहीं रही। लोग घर खर्च भी नहीं उठा पा रहे।

सोना बेचने वालों में ज्यादातर लोअर मिडिल क्लास से जुड़े लोग हैं। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा खराब है। गांव में रहने वाले शहर कम आ पा रहे हैं और आसपास जो भाव मिलता है उसी में पुराना सोना बेच रहे हैं।

स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि हॉल मार्किंग गोल्ड ज्वैलरी बेचने की अनिवार्यता के बाद गांव वाले आकर पुराना सोना ज्यादा बेच रहे हैं। इनमें ऐसे ग्राहक हैं, जिनकी ज्वैलरी हॉल मार्क नहीं है या शुद्ध नहीं है।

हालांकि, हॉल मार्क वाले पुराने गोल्ड की बिक्री से ग्राहकों को अच्छा भाव मिलता है। जबकि टांका वाला गढ़ा सोना बेचने में कम। अनिल ने बताया कि हॉल मॉर्क वाले गहनों में रीटेस्टिंग की जरूरत नहीं होती है। इससे ज्वैलर ग्राहकों को गुमराह नहीं कर सकते।

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Editor : Maya Puranik
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