रिश्ते निभाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं, वहीं दूसरे ही पल ज़रा से उकसाने से खुद को दूर भी कर लेते हैं. बहुत तुनकमिज़ाज और मनमौजी रहे हैं – क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को सालों से देख रहे पंजाब के एक पत्रकार का यही कहना है. महज़ चार साल पहले कांग्रेस का हिस्सा बने सिद्धू ने 57 साल की उम्र में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली है. इस तरह अरसे से राज्य कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृ्त्व से हटकर एक पीढ़ीगत बदलाव के लिए वह जिम्मेदार माने जा रहे हैं.
‘Master of All Trades, Jack of None’ यानी खुद को हरफनमौला बताने वाले ट्विटर परिचय के साथ पूर्व कैबिनेट मंत्री कहीं न कहीं अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा बताते हैं और शायद कहना चाहते हैं कि वह बुरे हालात से भी निपट सकते हैं. बाहरी का तमगा पहने सिद्धू ने 2017 में कांग्रेस से हाथ मिलाया जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली से न पट पाने के बाद वह पार्टी से बाहर आ गए थे. पीएम नरेंद्र मोदी की आलोचना करने से उनकी तारीफ करने तक और कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए बढ़ा चढ़ाकर बोलने से लेकर सोशल मीडिया पर उन्हें न बख्शने तक सिद्धू ने राजनीतिक मैदान में टिके रहने के लिए क्या कुछ नहीं किया.
इनके – सिद्धूवाद – की एक एक लाइनें न सिर्फ क्रिकेट, राजनीति और मनोरंजन में बल्कि उस पार्टी में भी हिट हो जाती हैं जिसमें ये शामिल होते हैं. इनकी वाकपटुता का फायदा हर पार्टी उठाना पसंद करती है. बीजेपी में करीब दस साल तक रहने के बाद – जिसकी वजह ये पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति सम्मान बताते हैं – पहली बार विद्रोह का स्वर 2014 में उठा जब इन्हें अमृतसर से टिकट न देकर पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली को दिया गया. हालांकि बदले में बीजेपी ने इन्हें राज्यसभा की सीट के लिए नामांकित किया, लेकिन इन्होंने जल्द ही इस्तीफा दे दिया. और अपनी बल्लेबाज़ी की ही तरह जिसने इन्हें सिक्सर सिद्धू का नाम दिया, लोग भी पंजाब में इनके अगले राजनीतिक शॉट का इंतजार करने लगे. आम आदमी पार्टी से बात नहीं बनी और कुछ वक्त के लिए इन्होंने आवाज़ ए हिंद पार्टी भी शुरू की जिसे सफलता नहीं मिली.