विदेश

तिब्बती बच्चों को सैनिक बनाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग दे रहा चीन, भारतीय बॉर्डर के पास बनाए सैन्य कैंप

चीन एडोल्फ हिटलर की राह पर चलते हुए तानाशाही पर उतर आया है. अब वह 8 से 16 साल की उम्र के तिब्बती बच्चों (Tibetan Children) को सैनिक बना रहा है और इसके लिए उन्हें सैन्य प्रशिक्षण भी दे रहा है. इसके लिए बकायदा न्यिंगत्रि (Nyingtri) में सैन्य प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं. ये वही इलाका है, जो पूरी तरह भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य की सीमा से सटा हुआ है. जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत मानता है. जानकारी के मुताबिक ऐसा माना जा रहा है कि ये कैंप 2021 की शुरुआत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कहने पर बनवाए गए हैं. 

चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सैन्य प्रशिक्षण वाले अड्डे को इस साल की शुरुआत में बनाया गया था. यहां तिब्बती बच्चों को स्कूल की छुट्टियों के दौरान प्रशिक्षण जा रहा है. वहीं तिब्बतियों पर नजर रखने वाली वेबसाइट फ्री तिब्बत ने कहा कि कैंप वहां स्थापित किया गया है, जहां पहले से ही बड़े स्तर पर चीनी सेना तैनात हैं. चीनी मीडिया का कहना है कि केंद्रों की स्थापना तिब्बती युवाओं को राष्ट्रीय रक्षा की शिक्षा देने के लिए की गई है, ताकि उनमें चीन के प्रति प्यार पनप सके और वह देशभक्ति को जान सकें. ताकि आगे चलकर देश की सीमाओं पर रक्षा की जा सके. 

इस तरह के कोर्स में बच्चों को सैन्य अनुशासन, सैन्य अभ्यास और शारीरिक गतिविधियां सिखाई जा रही हैं. ऐसा माना जा रहा है कि अरुणाचल से सटी सीमा के पास ये चीन की पहली ऐसी योजना है. वहीं बच्चे लहासा के प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते हैं. तिब्बती स्कूलों में जून और जुलाई के महीने में गर्मियों की छुट्टी दी जाती हैं. चीन का दावा है कि इन कैंप्स से बच्चों की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में सुधार किया जाएगा. चीन का कहना है कि इसका देश से सीधा संबंध है और चीन का भविष्य भी इसी से तय होगा. फ्री तिब्बत के अनुसार, तिब्बतीय क्षेत्र में इस तरह के कई कैंप बनाए जा रहे हैं

तिब्बत में साल 2008 में भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद चीन ने यहां के बच्चों को उनकी जड़ों से काटना शुरू कर दिया है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने बिग डाटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में काफी निवेश किया है, जिससे लोगों की निगरानी की जा रही है. चीन यहां के बच्चों की जीवनशैली बदल रहा है. इन बच्चों को तिब्बती भाषा में पढ़ाई करने की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही तिब्बत के मठ भी चीन की निगरानी में हैं, जिसके कारण वह लोगों को तिब्बती भाषा नहीं सिखा पा रहे.

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