देश

पाकिस्तान समर्थक और टेरर फंडिंग में नाम… हुर्रियत कांफ्रेंस के बनने और अप्रासंगिक होने की कहानी

जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में दो दशक से अधिक समय से अलगाववादी आंदोलन की अगुआई कर रहे हुर्रियत कांफ्रेंस (Hurriyat Conference) के दोनों धड़ों पर केंद्र सरकार कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (UAPA) के तहत प्रतिबंध लगा सकती है. हाल ही में एक जांच में पाया गया कि पाकिस्तान की कुछ संस्थाओं ने कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस की सीटें अलॉट की हैं, जिसके लिए हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने छात्रों से पैसा लिया था और इस पैसे का इस्तेमाल केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग के लिए किया गया है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार हुर्रियत के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत प्रतिबंध लगा सकती है. इस कानून के तहत सरकार को अधिकार है कि, यदि केंद्र का विचार है कि कोई भी संबंध अगर गैरकानूनी है, तो वह आधिकारिक घोषणापत्र के जरिए नोटिफिकेशन जारी करके उस संबंध को गैरकानूनी घोषित कर सकती है. जानिए कैसे शुरू हुआ हुर्रियत का आंदोलन और किस तरह अप्रासंगिक होता गया…

हुर्रियत की शुरुआत कैसे हुई?
अलगाववादी आंदोलन के एक राजनीतिक मंच के रूप में 31 जुलाई 1993 को ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) का गठन किया गया था. यह उन पार्टियों के समूह का विस्तार था, जो 1987 में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए एक साथ आई थीं. 1987 का चुनाव, ऐसा चुनाव था, जिसमें व्यापक रूप से धांधली का आरोप लगाया गया था. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के रूप में अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का मानना था कि जम्मू और कश्मीर “भारत के कब्जे में था”, और उनकी साझा मांग थी कि “विवाद के अंतिम समाधान के लिए राज्य के लोगों की इच्छाओं और आकांक्षाओं का पता लगाया जाना चाहिए.”

जब जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था, इस समूह ने उग्रवादी आंदोलन के राजनीतिक चेहरे का प्रतिनिधित्व किया, और “लोगों की इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने” का दावा किया. इससे हुर्रियत की दो मजबूत लेकिन अलग-अलग विचारधाराएं एक साथ आईं. इनमें से एक, जिसने भारत और पाकिस्तान दोनों से जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता की मांग की, और दूसरा धड़ा वह, जो जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे. अधिकांश समूह जो हुर्रियत का हिस्सा थे, उनके उग्रवादी समूह थे और या फिर वे आतंक से जुड़े हुए थे.

किसने किया हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन
27 दिसंबर 1992 को 19 वर्षीय मीर वाइज उमर फारूक जम्मू और कश्मीर अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन निर्वाचित हुए थे और अपने पिता मीरवाइज फारूक की हत्या के बाद कश्मीर के मुख्य धार्मिक नेता बने, उन्होंने राज्य के सभी धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों की मीरवाइज मंजिल पर एक बैठक बुलाई. इस बैठक का मकसद जम्मू और कश्मीर में भारतीय शासन के खिलाफ राजनीतिक पार्टियों का एक व्यापक गठबंधन बनाना था. इस बैठक के सात महीने बाद ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) का जन्म हुआ. इसके पहले चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक चुने गए थे.

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में सात पार्टियों के सात सदस्य होते हैं, इनमें जमात ए इस्लामी के सैयद अली शाह गिलानी, अवामी एक्शन कमेटी के मीर वाइज उमर फारूक, पीपुल्स लीग के शेख अब्दुल अजीज, इत्तेहादुल उल मुसलमीन के मौलवी अब्बास अंसारी, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के प्रोफेसर अब्दुल गनी भट, जेकेएलएफ के यासिन मलिक और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अब्दुल गनी लोन भी शामिल हैं.

अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद क्या हुआ?
5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे के दो साल बाद भी केंद्र शासित प्रदेश में हुर्रियत लीडरशिप शांत रही है. हुर्रियत की ओर से सिर्फ दो बयान सामने आए हैं, और इनमें भी बातचीत की अपील की गई थी. हुर्रियत के नरम धड़े की अगुआई करने वाले मीरवाइज उमर फारूक पिछले दो सालों से हाउस डिटेंशन में हैं. वहीं कट्टर धड़े के पहली और दूसरी पंक्ति के ज्यादातर नेता सलाखों के पीछे हैं. हुर्रियत के जो नेता जेल में हैं, उनमें शब्बीर अहमद शाह, नईम खान, मसरत आलम, अयाज अकबर, पीर सैफुल्लाह और शहीदुल इस्लाम. जेकेएलएफ प्रमुख यासिन मलिक भी सलाखों के पीछे हैं.

लेकिन हुर्रियत पर प्रतिबंध क्यों?
news18.com ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि कश्मीर के कुछ छात्रों को पाकिस्तान की मेडिकल संस्थाओं ने एमबीबीएस में एडमिशन दिया है. ये बात जांच में पता चली है और एडमिशन पाने वाले छात्रों से हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की पार्टियों ने पैसे लिए थे, जिसका इस्तेमाल केंद्रशासित प्रदेश में आतंकी घटनाओं को बढ़ावा देने के लिए किया गया था. ऐसे में केंद्र सरकार हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत प्रतिबंध लगा सकती है.

बता दें कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस 2005 में दो धड़ों में बंट गई थी, जिसमें नरम गुट की अगुआई मीर वाइज उमर फारूक के हाथों में हैं, जबकि कट्टरवादी धड़े की अगुआई सैयद अली शाह गिलानी के हाथों में है. केंद्र सरकार ने अभी तक जमात ए इस्लामी और जेकेएलएफ पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत प्रतिबंध लगाया है. ये प्रतिबंध 2019 में लगाया गया था.

RO Number- 13098/ 20

PRATYUSHAASHAKINAYIKIRAN.COM
Editor : Maya Puranik
Permanent Address : Yadu kirana store ke pass Parshuram nagar professor colony raipur cg
Email : puranikrajesh2008@gmail.com
Mobile : -91-9893051148
Website : pratyushaashakinayikiran.com