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देश के 44 शिक्षकों को राष्ट्रपति कोविंद से क्यों मिला राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार का सम्मान?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिक्षण के नये तरीके विकसित करने में योगदान देने के लिए देशभर से 44 शिक्षकों को रविवार को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया. राष्ट्रीय स्तर का यह पुरस्कार देश में कुछ सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों के अनोखे योगदान को और उन लोगों को सम्मानित करने के लिए शिक्षक दिवस के मौके पर दिया जाता है जिन्होंने अपनी प्रतिबद्धता से न सिर्फ स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारा है बल्कि अपने विद्यार्थियों के जीवन को भी समृद्ध बनाया है.

इस बात पर ध्यान दिलाते हुए कि प्रत्येक बच्चे में अलग-अलग क्षमताएं और प्रतिभा होती हैं, राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षकों को विद्यार्थियों की अलग-अलग जरूरतों एवं रुचियों को ध्यान में रखते हुए उनके सर्वांगीण विकास पर ध्यान देने की जरूरत है.

उन्होंने ऑनलाइन पुरस्कार समारोह के दौरान कहा, ‘शिक्षकों को इस बात पर खास ध्यान देना चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी की विभिन्न क्षमताएं, प्रतिभाएं, मनोविज्ञान, सामाजिक पृष्ठभूमि और पर्यावरण होता है. इसलिए, प्रत्येक विद्यार्थी की विशेष जरूरतों, दिलचस्पियों और क्षमताओं के अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाना चाहिए.’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘विद्यार्थियों की अंतर्निहित प्रतिभा के संयोजन की प्राथमिक जिम्मेदारी शिक्षकों की होती है. एक अच्छा शिक्षक व्यक्तित्व-निर्माता, समाज-निर्माता और राष्ट्र-निर्माता होता है.’ कोविंद ने अपने विशिष्ट योगदान के लिए पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी शिक्षकों को बधाई दी.

उन्होंने कहा, ‘ऐसे शिक्षक मेरे विश्वास को मजबूत करते हैं कि आने वाली पीढ़ी हमारे योग्य शिक्षकों के हाथों में सुरक्षित है. शिक्षकों का हर किसी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है, लोग अपने शिक्षकों को आजीवन याद करते हैं. जो शिक्षक अपने छात्रों को स्नेह एवं समर्पण से शिक्षा देते हैं, उन्हें अपने छात्रों से हमेशा सम्मान मिलता है.’

राष्ट्रपति ने शिक्षकों से अपने छात्रों को एक सुनहरे भविष्य की कल्पना करने और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने की योग्यता हासिल करने के लिए प्रेरित करने और सक्षम बनाने की अपील की. शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पहली बार 1958 में शुरू किए गए थे जिसका मकसद युवाओं की बुद्धि एवं भविष्य को आकार देने में शिक्षकों की उत्कृष्टता और प्रतिबद्धता को मान्यता देना था.

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