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आर्कटिक की बर्फ की आखिरी परत में हुआ 100 km लंबा छेद, दुनिया के लिए बड़ा खतरा

आर्कटिक (Arctic Sea) के सबसे पुरानी और सबसे मोटी बर्फ की परत (Last Ice Area)में पिछले साल मई के महीने में एक छेद हो गया. वैज्ञानिक इसे दुनिया के लिए खतरनाक संकेत बता रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इतने लंबे छेद से बर्फ के बीच दरारें बढ़ रही हैं, जो अब टूटकर पिघल जाएगी. इससे पूरी दुनिया में समुद्री जलस्तर बढ़ने का खतरा है. 

इस बारे में हाल ही में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में स्टडी भी प्रकाशित की है.कनाडा के एल्समेयर आइलैंड के उत्तर में स्थित इस प्राचीन बर्फ की मोटी परत में मई 2020 में ‘द पॉलीनिया’ (The Polynya) देखा गया था. इसका मतलब होता है एक बड़ा छेद या खुले पानी का सुराख. इसके पहले भी 1988 और 2004 में भी द पॉलीनिया देखा गया था

एल्समेयर आइलैंड के पास मौजूद आर्कटिक बर्फ 13 फीट मोटी है. इस बर्फ की परत की उम्र 5 साल है. यानी हर पांच साल में यह पिघलती और वापस इतनी ही हो जाती है. यानी हर पांच साल में यह पिघलती और वापस इतनी ही हो जाती है. लेकिन उत्तरी ध्रुव के पास बढ़ते तापमान की वजह से आर्कटिक की आखिरी बर्फ पर अब खतरा मंडरा रहा है. मई 2020 में आखिरी बर्फ का पूर्वी हिस्सा जो वान्डेल सागर में है, उसने अपना आधा हिस्सा गंवा दिया था. यह रिपोर्ट जुलाई 2021 में प्रकाशित की गई थी.

अगर आर्कटिक की बर्फ पिघलती है, तो न केवल भारत के तटीय इलाकों बल्कि देश के मौसम और कृषि पर इसका सीधा और खतरनाक असर पड़ेगा. वैज्ञानिक शोध कह रहे हैं कि आर्कटिक की समुद्री बर्फ जिस तेज़ी से पिघल रही है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया.

इसका खतरा यही है कि महासमुद्रीय धाराओं और उनसे जुड़े मौसम में स्वाभाविक तौर पर बड़ा बदलाव आएगा, जिसके कुछ इशारे दिखने भी लगे हैं. आइए जानें कि आर्कटिक की बर्फ पिघलने से भारत पर किस तरह के खतरे हैं.

जनसम्पर्क विभाग – आरएसएस फीड

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