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भारत-चीन सीमा विवाद पर बोले जनरल मनोज पांडे, ‘बातचीत जारी है, विश्वास है रास्ता निकलेगा’

भारतीय थल सेना की कमान संभालने के बाद जनरल मनोज पांडे ने देश की सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों पर बातचीत की. भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर उन्होंने कहा, ‘भारत और चीन के बीच बातचीत की प्रक्रिया जारी है. हमें विश्वास है कि यह आगे का रास्ता है. हमें विश्वास है कि जैसे-जैसे हम दूसरे पक्ष से बात करना जारी रखेंगे, हम चल रहे मुद्दों का समाधान खोज लेंगे.’

थल सेनाध्यक्ष ने कहा, ‘अपनी तैयारियों के स्तर के संदर्भ में, हमने उन क्षेत्रों में अतिरिक्त उपकरणों और सैनिकों को तैनात किया है, साथ ही साथ बुनियादी ढांचा भी विकसित किया है. हमारा ध्यान बुनियादी ढांचे के विकास पर भी रहा है, ताकि रसद और संचालन आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके. अंत में, हमारा उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम करना है और यथास्थिति बहाल करना है.’
सेनाध्यक्ष ने कहा कि एलएसी पर स्थिति सामान्य है. यथास्थिति को बलपूर्वक बदलने के लिए हमारे विरोधी द्वारा एकतरफा और उत्तेजक कार्रवाई हुई. मुझे लगता है कि इसका पर्याप्त रूप से जवाब दिया गया है. हमारे सैनिक महत्वपूर्ण और रणनीतिक स्थानों पर अपना कब्जा बनाए हुए हैं. हम बहुत स्पष्ट हैं कि यथास्थिति में किसी भी बदलाव और भारतीय क्षेत्र में किसी भी घुसपैठ की अनुमति नहीं देंगे. जहां तक ​​पाकिस्तान के साथ स्थिति का संबंध है, दोनों देशों के डीजीएमओ साल भर पहले एक समझौते पर पहुंचे, जिससे हमें नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले नागरिक आबादी की स्थिति में सुधार करने में मदद मिली है.
हालाँकि, मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि आतंकवादी बुनियादी ढांचे और आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में कमी के संदर्भ में, न तो कोई सबूत है और न ही ऐसा होने के कोई संकेत हैं. इसके विपरीत, हम पाते हैं कि सक्रिय आतंकवादियों की संख्या में वृद्धि हुई है. हालांकि एलओसी पर घुसपैठ और हिंसा का स्तर कम हुआ है, लेकिन भीतरी इलाकों में उस प्रभाव का कोई संकेत नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे काउंटर-इनफिल्ट्रेशन ग्रिड की सफलता के कारण, दूसरी तरफ (पाकिस्तान) से, नार्को टेरर होता है, जिसमें आप जम्मू-कश्मीर और आगे दक्षिण में सीमा पार से प्रतिबंधित वस्तुओं और हथियारों की तस्करी के मामले देखते हैं.

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के संबंध में जनरल मनोज पांडे ने कहा, इस संघर्ष ने यह सामने ला दिया है कि पारंपरिक युद्ध अब भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे. हमें पारंपरिक युद्ध लड़ने के लिए अपनी क्षमता विकास पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना होगा. हमें अपनी स्वदेशी हथियार प्रणालियों और उपकरणों पर भरोसा करने और उस क्षमता को विकसित करने की आवश्यकता है. उस हद तक, हम आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया पहल के साथ सेनाओं को जोड़ रहे हैं. अंत में, रूस-यूक्रेन संघर्ष ने सूचना और साइबर युद्ध के महत्व को सामने ला दिया है. हमें अपनी क्षमताओं का निर्माण करने की आवश्यकता है, क्योंकि हमें भविष्य में संघर्ष की संभावनाओं के लिए खुद को तैयार करना है.

जनरल मनोज पांडे 29वें सेना प्रमुख और कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर्स के पहले अधिकारी हैं, जिन्हें यह अवसर मिला है. जनरल मनोज पांडे को चीन से लगी भारतीय सीमाओं पर काम करने का अनुभव है. वह इंडियन आर्मी की ईस्टर्न कमांड में कमांडर और ब्रिगेडियर के तौर पर भी काम कर चुके हैं. इसके अलावा वह लद्दाख एरिया के माउंटेन डिवीजन में इंजीनियर ब्रिगेड के ब्रिगेडियर भी रह चुके हैं.

उन्होंने अपने सैन्य कार्यकाल के दौरान उत्तर-पूर्व में कई ऑपरेशन को अंजाम दिया है. परम विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित मनोज पांडे अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी इंडियन आर्मी के कमांडर रह चुके हैं. वह भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन पराक्रम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. आपको बता दें कि 1999 में कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया था. साल 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन पराक्रम चलाया. इसके तहत पाकिस्तान से आतंकियों को होने वाले हथियारों की सप्लाई के नेक्सस को ध्वस्त कर दिया गया था.

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