जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन या परिसीमन की प्रक्रिया पर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली द्वारा पारित प्रस्ताव को लेकर भारत ने दो टूक जवाब दिया है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस संबंध में जानकारी दी है. विदेश मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है, ‘हम जम्मू-कश्मीर में परिसीमन अभ्यास पर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली द्वारा पारित हास्यास्पद प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं. पाकिस्तान के पास भारतीय क्षेत्रों (पीओके) पर अवैध कब्जे सहित भारत के आंतरिक मामलों में निर्णय लेने या हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गत 6 मई को जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी और भारत के प्रभारी राजदूत को तलब किया था. पाकिस्तान सरकार ने जम्मू-कश्मीर के परिसीमन को लेकर गठित आयोग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए दावा किया था कि इसका उद्देश्य मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करना और उन्हें राज्य में कमजोर करना है. इसके कुछ दिन बाद पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने अपने देश की नेशनल असेंबली में एक प्रस्ताव पेश कर जम्मू-कश्मीर के डिलिमिटेशन को खारिज किया था.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से स्पष्ट रूप से कहा है कि देश की संसद द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म करना उसका आंतरिक मामला था. जम्मू-कश्मीर हमेशा भारत का अभिन्न अंग था, है और बना रहेगा. भारत ने पाकिस्तान को वास्तविकता स्वीकार करने और अपना प्रोपेगेंडा बंद करने की सलाह दी. इससे पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने टिप्पणी की थी, जिस भारत ने कड़ा ऐतराज जताया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गत सोमवार को कहा था कि OIC ने भारत के आंतरिक मामलों पर अनुचित टिप्पणी की है. जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा था कि इस्लामिक सहयोग संगठन को किसी एक देश के इशारे पर कम्युनल प्रोपेगेंडा फैलाने से परहेज करना चाहिए. इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने सोमवार को ट्वीट कर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को लेकर आपत्ति जताई थी. OIC ने अपने ट्वीट में लिखा कि भारत का यह प्रयास जम्मू-कश्मीर के जनसांख्यिकीय ढांचे को बदलने के लिए है. यह कश्मीरी आवाम के अधिकारों का उल्लंघन है. परिसीमन की यह प्रक्रिया चौथे जिनेवा कन्वेंशन सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून का सीधा उल्लंघन है.