छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने प्रदेश में पहली बार प्रदान किए पर्यावास अधिकार मान्यता पत्र

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज विश्व आदिवासी दिवस 09 अगस्त के अवसर पर छत्तीसगढ़ के विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह ‘‘कमार’’ को एक विशेष तोहफा देते हुए उन्हें पर्यावास अधिकार (भ्ंइपजंज त्पहीजे) मान्यता पत्र वितरित किए। प्रदेश में पहली बार विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह को पर्यावास अधिकार प्रदान किया गया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है, जहां विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह को पर्यावास अधिकार दिया गया है। इसी तरह कमार जनजाति समूह प्रदेश का पहला जनजाति समूह है, जिसे राज्य शासन द्वारा पर्यावास अधिकार मिला है। मुख्यमंत्री श्री बघेल ने आज अपने निवास कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में धमतरी जिले के मगरलोड विकासखण्ड अंतर्गत स्थित मगरलोड पाली/उपक्षेत्र (परंपरागत क्षेत्र) के 22 कमार पारा/टोला के मुखिया को पर्यावास अधिकार मान्यता पत्र प्रदान किए।
कार्यक्रम में आदिम जाति विकास मंत्री श्री मोहन मरकाम, आदिम जाति विकास विभाग के सचिव श्री डी.डी. सिंह, आयुक्त श्रीमती शम्मी आबिदी सहित कमार जनजाति के मुखिया उपस्थित थे।

पर्यावास अधिकार –

वन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 2 (ज) में पर्यावास अधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार सामान्यतः पर्यावास अधिकार पीव्हीटीजी के पर्यावास क्षेत्र के अंतर्गत उनके पारंपरिक एवं रूढ़िगत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और आजीविका से संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र पर पारंपरिक रूप से निर्भरता एवं जैव विविधता अथवा पारंपरिक ज्ञान का अधिकार मान्य करने के साथ उनके संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु मान्यता प्रदान करता है। पर्यावास अधिकार प्रदान करने की यह पहल अन्य विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूहों तथा कमार जनजाति समुदाय की अन्य पालियों, उपक्षेत्रों के लिए भी एक मार्गदर्शिका सिद्ध होगा एवं शीघ्र ही अन्य विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूहों के लिए भी इस दिशा में प्रयास किया जाएगा।

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को अधिकार सम्पन्न बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। समर्थन मूल्य पर धान, लघु वनोपजों, मिलेट्स की खरीदी के साथ व्यक्तिगत, सामुदायिक वन अधिकार पत्र, सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार प्रदान किए गए हैं। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां वन अधिकार मान्यता पत्र के माध्यम से आदिवासियों और वनवासियों को दी गई जमीन की ऋण पुस्तिका बनाई गई है। ऋण पुस्तिका बनने से पट्टेधारियों के लिए समर्थन मूल्य पर कृषि और लघु वनोपजों तथा मिलेट्स उपज बेचना संभव हो रहा है। इसके साथ ही साथ उन्हें कृषि कार्यों के शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सामुदायिक तथा वन संसाधन वन अधिकार मान्यता पत्र के माध्यम से लाखों हेक्टेयर जमीन वनवासियों को दी गई है। सामुदायिक तथा वन संसाधन मान्यता पत्र के माध्यम से मिले अधिकारों का उपयोग पट्टाधारी किस तरह कर सकें इसके लिए जनजागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इसके लिए आज वनाधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के संबंध में जागरूकता हेतु ग्राम सभाओं में जागरूकता अभियान के द्वितीय चरण का शुभारंभ किया गया है। इस अभियान का प्रथम चरण वन अधिकार मान्यता पत्र की प्रक्रिया की जानकारी पर केन्द्रित था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन अधिकारों के उपयोग के संबंध में जागरूकता लाने के लिए राज्य सरकार और समाजसेवी संगठनों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने विभिन्न जनजाति समुदायों के समाज प्रमुखों से भी आग्रह किया कि वे इस काम को प्राथमिकता के साथ हाथ में लें, ताकि आदिवासियों को प्राप्त अधिकारों का वे अधिक से अधिक लाभ उठा सकें। यह प्रयास छत्तीसगढ़ को समृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

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