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पश्चिम बंगाल के Chief Secretary और DGP को जारी नोटिस पर न्यायालय की रोक

नईदिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद सुकांत मजूमदार की कदाचार संबंधी शिकायत पर लोकसभा सचिवालय की विशेषाधिकार समिति द्वारा पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और अन्य के खिलाफ जारी नोटिस पर सोमवार को रोक लगा दी। पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के हिंसा प्रभावित संदेशखालि जाने से रोकने पर भाजपा कार्यकर्ताओं की पुलिस कर्मियों से झड़प हो गयी थी, जिसमें मजूमदार को चोटें आईं थीं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव भगवती प्रसाद गोपालिका, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कुमार, उत्तर 24 परगना जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक सहित अन्य को पूर्वाह्न 10.30 बजे लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के समक्ष पेश होने के लिए नोटिस जारी किया था। भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पश्चिम बंगाल के अधिकारियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए राज्य अधिकारियों को जारी नोटिस पर रोक लगा दी और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद के लिए निर्धारित कर दी।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं की मामले पर तत्काल सुनवाई की अर्जी पर संज्ञान लेते हुए पश्चिम बंगाल के अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई की। सिब्बल ने कहा कि किसी सांसद को संसदीय विशेषाधिकार राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं दिया गया और इसे केवल तभी लागू किया जा सकता है जब सदन में भाग लेने के दौरान एक सांसद को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा पहुंचाई जाती है। उन्होंने कहा कि संदेशखालि क्षेत्र में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू है और भाजपा सांसद व उनके समर्थकों ने उसका उल्लंघन किया था।
सिब्बल ने सांसद द्वारा पुलिस अत्याचार की शिकायत को झूठा करार दिया और कहा कि वह (कपिल सिब्बल) भी ऐसे वीडियो पेश कर सकते हैं, जिसमें भाजपा कार्यकर्ता पुलिस अधिकारियों पर हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं। दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि लोकसभा सचिवालय ने जिन अधिकारियों को तलब किया है, वे कथित घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। भाजपा सांसद ने 15 फरवरी को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके तुरंत बाद नोटिस जारी किए गए। सिंघवी ने कहा, विशेषाधिकार, एक सांसद के रूप में आपके काम की रक्षा के लिए हैं, नहीं तो हर मामले में विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा इसलिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। पीठ ने पूछा कि क्या नोटिस इसलिये जारी किये गये क्योंकि सांसद घायल हो गये? अधिवक्ता ने अदालत को बताया, वीडियो में वह (सांसद) पुलिस की गाड़ी के बोनट पर कूदते हुए दि‍खाई दे रहे हैं।
भाजपा के उनके सहयोगियों ने उन्हें खींचा। पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई है। लोकसभा सचिवालय की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवाशीष भरुखा ने शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाने के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यह विशेषाधिकार समिति की पहली बैठक है। अधिवक्ता ने कहा, उन पर कोई आरोप नहीं लगाया जा रहा। यह एक नियमित प्रक्रिया है। एक बार जब कोई सांसद नोटिस भेजता है और अध्यक्ष को लगता है कि मामले पर गौर करने लायक कुछ है तो नोटिस जारी किया जाता है। सांसद सुकांत मजूमदार और अन्य को पिछले सप्ताह संदेशखालि में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। संदेशखालि इलाके में बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता शाहजहां शेख और उनके समर्थकों पर जबरदस्ती जमीन हड़पने और यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाए जाने से तनाव व्याप्त है।

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