वर्ल्ड हीमोफिलिया डे पर रायपुर मेडिकल कॉलेज में संगोष्ठी
रायपुर । हीमोफिलिया रक्त की एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है, जिसमें रक्त के थक्का जमने में आवश्यक फेक्टर 8 या फेक्टर 9 की कमी होती है, जिससे रक्त का थक्का नहीं बन पाता। इस कारण बार-बार रक्तस्त्राव होने लगता है। विभिन्न जोड़ों में रक्तस्त्राव के कारण विकृति और विकलांगता निर्मित होती है और आंतरिक महत्वपूर्ण अंगो में रक्तस्त्राव मृत्यु के कारण भी बनते हैं। उक्त हीमोफिलिया बीमारी के विभिन्न चिकित्सकीय पहलुओं पर जानकारी हेतु पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के पैथालॉजी और मेडिसीन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “वर्ल्ड हीमोफिलिया डे” का आयोजन किया गया।
आयोजन अध्यक्ष डॉ. अरविन्द नेरल प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पैथालॉजी ने अपने स्वागत उद्बोधन में हीमोफिलिया बीमारी के चिकित्सकीय, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुये इस संगोष्ठी के औचित्य और उपयोगिता का उल्लेख किया।
बाल्को मेडिकल सेंटर के हिमेटोलॉजिस्ट डॉ. दिब्येन्दू डे ने अपने व्याख्यान में हीमोफिलिया बीमारी के पहचान के लक्षण, रक्त परीक्षण एवं ईलाज हेतु ऑन डिमांड और बचाव के लिये फेक्टर 08 और फेक्टर 09 कितनी मात्रा और कितने अंतराल में दिये जाना है, इसकी विस्तृत विवेचना की। उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण में छत्तीसगढ़ राज्य में हीमोफिलिया रोगियों की स्थिति पर भी चर्चा की। उन्होनें इसके नये उपचार जिसमें जीन थेरेपी प्रमुख है, के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं एवं मरीजों के लिये अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन हेतु आशा की किरण नजर आती है ।
हीमोफिलिया मरीजों के लिए प्रोफाइलेक्सिस थेरेपी एवं होम थेरेपी से उनकी विकलांगता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।