यदि शनिदेव कुंडली में तृतीय, षष्ठ और एकादश भाव में आसीन हों, तो अपनी दशा में हानि नहीं लाभ का कारक बनते हैं। तब शनि से संबंधित कर्म अपार धन, संपत्ति व सफलता का सबब बनते हैं। तब तेल, चमड़े, लोहे, स्टील, मशीनरी, सर्विसिंग, कोयले व खनिज के क्षेत्र में बड़ी सफलता मिलती है।
शनि यदि कुंडली के दशम स्थान में हों, तो व्यक्ति न्यायप्रिय, भाग्यशाली, उदार और धनवान होता है। ये लोग विलक्षण सुप्त क्षमता के मालिक होते हैं। जो कहा जाता है या दिखाया जाता है, ये उसे अधिक तवज्ज़ो नहीं देते, पर जो नहीं बताया जाता या छिपाया जाता है, उसे ज़रूर भांप लेते हैं। यह शनि व्यक्ति को जीवन में बड़े पद या नौकरशाह के रूप में कामयाब बनाते हैं। ये दूसरों के काम का श्रेय स्वयं लेना पसंद नहीं करते। इन्हें शासन, सत्ता और राजनैतिक मामलों की गहरी समझ होती है। इनके अंदर नेतृत्व का गुण समाहित होता है। ये जीवन में सामान्य रूप से सुखी, शक्तिशाली एवं भावुक होते हैं। पराक्रम और साहस इनमें कूट-कूट कर भरा होता है। इनकी गिनती महत्वाकांक्षी एवं सफल कारोबारियों या रणनीतिकारों में होती है। दशम भाव के शनि पेशेवर जीवन में कई बार परिवर्तन करते हैं। ज़िंदगी में इनका करियर पूर्ण रूप से कम से कम दो या इससे अधिक बार अवश्य बदल जाता है। यह एक कुशल शासक, भविष्यवेत्ता और दूरदृष्टा होते हैं। धन, समृद्धि, प्रतिष्ठा और लोकप्रियता उन्हें बढ़ती उम्र में स्वयमेव हासिल हो जाती है। यह शनि लक्ष्य के प्रति कड़ा श्रम कराएंगे और धीरे-धीरे सकारात्मक परिणाम देंगे।
प्रश्न: मुझे बीमारियां घेरे रहती हैं, धन डूब जाता है, कहीं सम्मान नहीं मिलता। कोई उपाय बताइए। -जीवन सहाय
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि अगर सम्मान न मिलता हो, दैहिक विकार घेरे रहते हों, प्रमोशन में विघ्न पड़ता हो या पैसा बार-बार अटक जाता हो अथवा नष्ट हो जाता हो, तो यह सब कुंडली में सूर्य ख़राब होने के लक्षण हैं। भोजन का प्रथम ग्रास गाय या अग्नि को अर्पित करने, लाल मिर्च के बीज युक्त जल से सूर्य को अर्घ्य देने, बुज़ुर्गों के इलाज़, सुख व सम्मान की व्यवस्था करने व गायों को रोटी-गुड़ खिलाने से लाभ होगा, ऐसा ज्योतिषिय मान्यताएं कहती हैं।
प्रश्न: कानूनी उलझनें बढ़ गईं हैं। ऋण हो गया है। हमारे घर का मुख्य द्वार दक्षिण में है। किसी ने इसे ही हमारी समस्या की जड़ बताया है। ज्योतिष इस संबंध में क्या कहता है? -योगेश भल्ला
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि घर और घर की दिशाओं का अध्ययन ज्योतिष में नहीं, वास्तु में होता है। अगर हमारे पिछले किसी अज्ञात नकारात्मक कर्मों से भाग्य प्रभावित होता है, तो यकीनन उसका अक्स वास्तु में भी दृष्टिगोचर होता है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार दक्षिण-पश्चिम का मुख्य द्वार क़ानूनी जटिलताओं का जनक माना जाता है। आपके गृह की स्थिति निश्चित रूप से वास्तु के अनुरूप नहीं है। यदि घर के अंदर की योजना भी वास्तुसंगत न हुई, तो यह आपके कष्टों में कुछ इज़ाफ़ा कर सकता है। चिंता बिलकुल न करें। यथासंभव उत्तराभिमुख रहने, उत्तर पूर्व दिशा में दर्पण स्थापित करने से लाभ होगा। यदि रसोई घर आग्नेय कोण में और स्नानघर उत्तर या पूर्व में हो, तो कष्ट में कमी होगी, ऐसा मैं नहीं वास्तु के नियम कहते हैं।
प्रश्न: पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे लोग भाग्यशाली होते हैं या नहीं? -रमेश गोयल
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि कि भाग्य और प्रारब्ध कर्म से निर्मित होता है। इसका सारा दारोमदार नक्षत्रों पर ही नहीं है। पर हां! पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग सामान्य रूप से भाग्यशाली माने जाते हैं। ये सुख, आनंद और समृद्धि से परिपूर्ण होते हैं। समाज में प्रशंसनीय और स्वभाव से बेहद शांत होते हैं। इन्हें लोगों का स्नेह और आदर प्राप्त होता है। भोग विलास में इनकी स्वाभाविक रुचि होती है। उत्तम मित्रों का इनको सुख हासिल होता है। ये संतान का पूर्ण आनंद प्राप्त करते हैं।
प्रश्न: अगर कुंडली में शनि वक्री हो, तो कैसा होता है? -भुपेश शर्मा
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि अगर कुंडली में शनि वक्री हो, तो स्वभाव से स्वार्थी बनाता है। ये लोग बात-बात में संदेह करने वाले और छद्म सिद्धांतवादी होते हैं। अंदर से ये कुछ और बाहर से कुछ और नज़र आते हैं। वक्री शनि बनावटी जीवन व दिखावा करने की प्रवृति का कारक है।