आंतरिक और बाह्य विकास के लिए किए गए कर्म को संस्कार माना गया है। संस्कार शब्द सम उपसर्ग व कृ धातु से निर्मित है। वेद व्यास ने सोलह संस्कारों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैं- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशांत, समावर्तन, परिग्रहण, आवसश्याधान, श्रौताधान।
धन रखने के स्थान पर पिरमिड या गुंबदनुमा वस्तु आर्थिक स्थिति सुधारने एवं अपव्यय से बचाने में सहायक होती है, ऐसा मान्यताएं कहती हैं।
शनिदेव यदि कुंडली के एकादश भाव में आसीन हों, तो ऐसे लोग दयालु, परोपकारी और मधुरभाषी होते हैं। यह शनि सामान्यत: शुभफल प्रदाता है। इनको अनेकानेक विषयों व विद्याओं का ज्ञान होता है। ये संतोषी, दीर्घायु, शूरवीर, निर्लोभी, सुखी और स्थिर बुद्धि वाले माने जाते हैं। विद्वता से ये लाभान्वित होते हैं। विद्वानों का इनको पूर्ण समर्थन और सहयोग मिलता है। ये श्रेष्ठ वाहनों से युक्त होते हैं। यह शनि यशस्वी बनाता है, और श्रेष्ठ लोगों व अच्छे मित्रों की संगति देता है। जीवन में इन्हें नानाप्रकार का सुख मिलता है। ये भाग्यवान, विचारशील और भोग से परिपूर्ण लोगों में शुमार होते हैं। ये शत्रुओं को आसानी से पराभूत कर लेते हैं। राजा या सरकार की कृपा से इन्हें भौतिक संसाधन हासिल होता है। संतान का सुख इनको विलंब से मिलता है। सामान्यत: इन्हें बड़े रोग नहीं सताते। इनकी सेहत पर कभी नकारात्मक असर पड़ा भी, तो ये जल्द ठीक हो जाते हैं। यह सर्वमान्य व्यक्ति होते हैं। कालांतर में उत्तम धन संपत्ति के स्वामी बन जाते हैं। प्रपंच, धूर्तता और कपट से इन्हें सदैव हानि होती है।
प्रश्न: क्या चंद्रमा दूसरे भाव में बैठकर धन, भाग्य, प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं? क्या ये लोग कामुक होते हैं?
उत्तर: नहीं। कदापि नहीं। चंद्रमा यदि दूसरे भाव में हों, तो ऐसे लोग समृद्ध, प्रतिष्ठित व प्रसिद्ध लोगों में शुमार होते हैं। हां! ये विपरीतलिंगी विलासी होते हैं। विषय वासनाओं के प्रति इनकी रुचि सामान्य से अधिक होती है। इनकी सूरत सुंदर, आकर्षक व लुभावनी होती है। चंद्रमा की यह स्थिति कृषि संपदा में वृद्धि करती है। ये शिक्षा प्रेमी, शक्तिशाली, भाग्यशाली, तेजस्वी, विनम्र, मधुरभाषी, संपन्न, उदार होते हैं। इनका परिवार बृहद् और खुशहाल होता है। आरंभिक शिक्षा में अड़चनें आती हैं, पर सुशिक्षित हैं। कुल-कुटुंब से प्रेम करते हैं। धनसंचयी, सहिष्णु, मर्मज्ञ व सरकार द्वारा सम्मानित/ पुरस्कृत होते हैं। इनमें संतोष की कमी और ज़िद की अधिकता होती है। कई बार इस योग के कारण वाणी दोष पाया जाता है। विपरीत लिंगियों से इनके लिए धन लाभ का योग बनता है। चंद्रमा अगर बृहस्पति से युक्त या दृष्ट हों, तो शुभ फलदायी होते हैं। अगर चंद्र पूर्ण हों, तो ये समृद्धि, उत्तम संतति, शांति से अलंकृत होते हैं। चंद्रमा अगर मंगल युक्त हों तो चर्मरोग, बुध के संग धन का नाश, शनि के साथ आत्मीय परिजन से च्युत और राहु या केतु के साथ हों, तो दारिद्र्य देते हैं।
प्रश्न: कलानिधि योग जीवन में किस प्रकार की कला का कारक बनता है?
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि कलानिधि योग एक प्रकार का राजयोग है। इस योग वाले आकर्षक, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सेहतमंद, अमीर, ढेरों वाहन के मालिक और शासक/ प्रशासक होते हैं। जन्म कुंडली में गुरु द्वितीय या पंचम भाव में शुक्र या बुध से दृष्ट हों, तो कलानिधि योग बनता है। गुरु द्वितीय अथवा पंचम भाव में वृष, मिथुन, कन्या या तुला में हों, तब भी इस योग के फल मिलते हैं। अनिवार्य ये है कि बुध और शुक्र भी किसी भी प्रकार के दोष से युक्त न हों।
प्रश्न: पापी ग्रहों की दशा क्या पापयुक्त प्रवृत्तियों की वज़ह बनती है?
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि सार्वभौमिक रूप से किसी ग्रह की महादशा शुभ या अशुभ फल देगी, यह सही नहीं है। ग्रहों का या उनकी दशाओं का भला या बुरा असर उसकी स्थिति और उस पर पड़ने वाली दृष्टि पर निर्भर करता है। शुभ स्थिति होने पर कई बार यही पापी ग्रह अपनी दशा में भौतिक दृष्टि से ज्यादा सुख प्रदान करने की क्षमता रखते हैं। अशुभ स्थिति में शुभ ग्रह भी नकारात्मक असर से जीवन का बंटाधार कर सकते हैं।
प्रश्न: अष्टम भाव का चंद्रमा क्या मानसिक समस्या देता है?
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि जन्म कुंडली के षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में चंद्रमा की उपस्थिति व्यक्ति को अतिविचारशीलता, संवेदनशीलता, कल्पनाशीलता प्रदान करके भावुक व स्वप्नदृष्टा बनाती है। किंतु अत्यधिक संवेदनशीलता व अति भावुक होने से इनका व्यक्तित्व एकतरफ़ा, रूखा व नाटकीय होकर इनके लाभ और सफ़लता पर कई बार उद्यम के अभाव में प्रभावित करता है और इनके जीवन पर नकारात्मक असर डालता है। इन्हें धन के जोख़िम से बचना चाहिए, सट्टे या फ़्यूचर ट्रेडिंग से दूर रहना चाहिए, अन्यथा लाभ की जगह हानि होगी।