चंडीगढ़
एक महज संयोग है कि एक जून को पंजाब में उस दिन वोटिंग हो रही है, जिस दिन 40 साल पहले अमृतसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हुआ था। ऑपरेशन ब्लू स्टार का असर पंजाब में दशकों तक रहा। खालिस्तानी आतंकियों के खिलाफ चले इस ऑपरेशन से जुड़े कई राजनेता और अफसर गोलियों के शिकार बने। अक्तूबर 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख बॉडीगार्डों ने हत्या कर दी और देश में दंगे हुए। आज तक चुनावों में बीजेपी और आप पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के उस बयान की याद दिलाते हैं, जब उन्होंने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है…। लोकसभा चुनाव 2024 में भी अकाली दल ऑपरेशन ब्लू स्टार में डैमेज अकाल तख्त की पुरानी तस्वीरें जनसभाओं में दिखा रहा है। सेना के ऑपरेशन में टूटे स्वर्ण मंदिर के पुराने पोस्टर भी लगाए जा रहे हैं।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में एक जून को चली थी पहली गोली
1983 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने कब्जा कर लिया था। दमदमी टकसाल का पूर्व प्रमुख भिंडरावाले ने गोल्डन टेंपल को किले में बदल दिया था। उसके समर्थकों के पास हथियारों और गोला-बारूद का जखीरा था। अलग खालिस्तान की मांग कर रहे भिंडरावाले ने पंजाब में उथल-पुथल मचा रखी थी। निरंकारियों और हिंदुओं पर आतंकी हमले पर उसका हाथ था। अप्रैल 1983 में गोल्डन टेंपल में मत्था टेकने गए पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल को भी गोलियों से भून डाला था। इसके बाद केंद्र सरकार ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। मई 1984 में इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई की अनुमति दी। 29 मई को भिंडरावाले से स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने के लिए मेरठ की इन्फेंट्री डिविजन के जवान और पैरा कमांडो अमृतसर पहुंच गए। एक जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरु हुआ और इसी दिन पहली गोली चली। मंदिर के आसपास घरों में छिपे आतंकियों और सेना के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें 11 लोग मारे गए। 3 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और 5 जून सेना ने गोल्डन टेंपल में एंट्री ली। भिंडरावाले और आतंकियों ने अकाल तख्त में छिपकर हमले किए। फिर सेना ने तोप के इस्तेमाल का फैसला किया। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, 10 जून तक चले ऑपरेशन में 83 सैनिक समेत 554 लोग मारे गए। इस ऑपरेशन में जनरैल सिंह भिंडरावाले भी मारा गया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और दंगे के निशान धुंधले पड़े…
ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख बॉडीगार्ड ने कर दी। पूरे देश में सिख विरोधी दंगे हुए। रिपोर्टस के मुताबिक, उस दंगे के दौरान सिर्फ दिल्ली में दो हजार से अधिक लोग मारे गए। इसके बाद देश की राजनीति में सिख दंगा और ऑपरेशन ब्लू स्टार भी चुनावी मुद्दा बन गया। 1984 के आम चुनाव में पंजाब में वोटिंग स्थगित कर दी गई। वहां राजीव-लोंगोवाल समझौते के बाद अगस्त 1985 में विधानसभा चुनाव के साथ पंजाब में लोकसभा के लिए वोट डाले गए। राज्य में शिरोमणि अकाली दल की सरकार बनी। लोकसभा में कांग्रेस को 6 और अकाली दल को सात सीटें मिलीं। इसके बाद के चुनावों में कांग्रेस की हालत पतली होती गई। 1989 में कांग्रेस को 2 सीटें मिलीं। 1991 में अकाली दल ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो कांग्रेस 12 सीटों पर पहुंच गई, मगर 1996 में फिर दो सीटों पर सिमट गई। 1998 में उसे सिर्फ 1 सीट मिली। 1999 में कांग्रेस फिर पंजाब में मजबूत हुई और 8 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद जीत-हार का सिलसिला चलता रहा तब ऐसा लगा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के निशान अब धुंधले पड़ चुके हैं। कांग्रेस दो बार राज्य की सत्ता में भी लौटी।
रैलियों में दिखाए जा रहे हैं अकाल तख्त के पोस्टर
2014 में पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की एंट्री हुई और राजनीतिक माहौल बदलने लगा। करप्शन, फ्री बिजली-पानी समेत मुफ्त सर्विस जैसे मुद्दे दंगों और सिख अस्मिता पर भारी पड़ने लगे। अकाली दल, कांग्रेस और बीजेपी इस नए समीकरण में पीछे छूटने लगे। 2019 में कांग्रेस ने 8 सीटें जीतकर दो-दो सीट जीतने वाले बीजेपी-अकाली गठबंधन को बैकफुट पर ला दिया। आप भी एक सीट लेकर संतोष करती रही। 2024 में बीजेपी और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस दिल्ली में आप की सहयोगी है, मगर पंजाब में भगवंत मान सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ रही है। इस घालमेल की राजनीति में अकाली दल ने फिर से 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार को चुनावी मुद्दा बना दिया। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल रैलियों में क्षतिग्रस्त अकाल तख्त की तस्वीरें दिखा रहे हैं। अकाली दल के निशाने पर कांग्रेस है। अगर ऑपरेशन ब्लू स्टार का मुद्दा 40 साल बाद गरमाया तो नुकसान कांग्रेस को होगा। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि सिखों की नई पीढ़ी 1984 की घटना के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार नहीं मानती है। राहुल गांधी कई बार गोल्डन टेंपल में सेवा भी कर चुके हैं, हालांकि कई जगहों पर उनकी विरोध भी हुआ । एक जून को पंजाब का मूड क्या रहेगा, यह चार जून को तय हो जाएगा।