मध्यप्रदेश

HC ने सेना को आदेश दिया ‘सैनिक के लापता होने के दिन से मृत मानकर दें फैमिली पेंशन’

 इंदौर
 सेना के जवान देश के लिए जीते हैं और देश के लिए ही मरते हैं। दुर्भाग्य से जब कोई सैनिक अचानक लापता हो जाता है तो उसके स्वजन के प्रति सेना का व्यवहार बदल जाता है। लापता सैनिक के परिवार की मदद के बजाय सेना उनसे अपेक्षा करती है कि वे न्यायालय के माध्यम से सैनिक की मृत्यु की घोषणा कराएं।

शोक संतप्त परिवार के सामने कठिनाई यह है कि सैनिक की पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति भत्ते जारी करने से भी इनकार कर दिया जाता है। सैनिक के गौरव और स्वाभिमान को देखते हुए अब इन घिसे-पिटे नियमों को खत्म करने की आवश्यकता है। इस तल्ख टिप्पणी के साथ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने लापता सैनिक के परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया।

जिस दिन से सैनिक गायब उसी दिन से पारिवारिक पेंशन दें

कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में जिस दिन से सैनिक गायब होना दर्ज है, उसे उसी दिन मृत मानकर सैनिक के परिवार को पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ दिए जाएं। मंदसौर जिले के सुरेंद्र सिंह सोलंकी वर्ष 2001 में सिग्नलमैन के पद पर भर्ती हुए थे। वर्ष 2010 में प्रशिक्षण के लिए उन्हें गोवा भेजा गया। वह वहां से गायब हो गए। इसके बाद उनका कोई अता-पता नहीं चला। सेना ने सोलंकी के माता-पिता को उनके गायब होने की सूचना दे दी।

सुरेंद्र सिंह गोवा से ही गायब हुए थे- सेना

सेना की आंतरिक जांच में भी स्पष्ट हुआ कि सुरेंद्र सिंह गोवा से ही गायब हुए थे। लापता होने के वर्षों बाद भी उनके माता-पिता को पारिवारिक पेंशन मिलनी शुरू नहीं हुई। उन्होंने इस बारे में सेना से संपर्क किया तो बताया गया कि सुरेंद्र सिंह का मृत्यु प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने पर ही पेंशन शुरू होगी। इस पर सैनिक के माता-पिता ने मंदसौर जिला कोर्ट में बेटे की सिविल डेथ के लिए दावा लगाया।

मां-बाप ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की

कोर्ट ने आवेदन तो स्वीकार कर लिया, लेकिन मृत्यु की तारीख दावा प्रस्तुत करने की तारीख को माना। इस पर माता-पिता ने एडवोकेट नितिन सिंह भाटी के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसमें कहा कि कानूनी रूप से सात वर्ष से लापता व्यक्ति को मृत मान लिया जाता है। सेना के रिकॉर्ड के मुताबिक सुरेंद्र सिंह वर्ष 2010 में लापता हुए हैं तो मृत्यु उसी तारीख को मानकर पूरी पारिवारिक पेंशन दिलाई जाए, क्योंकि सेना ने भी जांच में उस तारीख से ही गायब माना है।

कोर्ट ने सैनिक की मृत्यु की तारीख 25 जुलाई 2010 माना

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने सैनिक की मृत्यु की तारीख 25 जुलाई 2010 को मानते हुए इसी तारीख से उसके स्वजन को पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ दिए जाने के आदेश दिए। गौरतलब है कि प्रति वर्ष बड़ी संख्या में सैनिक सियाचीन और अन्य स्थानों पर लापता हो जाते हैं, लेकिन उनके गायब होने की तारीख को उनकी मृत्यु की तारीख नहीं माना जाता है।

जनसम्पर्क विभाग – आरएसएस फीड

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