प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सदियों पहले ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस पाने के लिए साक्षात काल, यानि यमराज को विवश कर दिया था। सुहागिन महिलाएं इस दिन वट वृक्ष का पूजन कर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती व सुनाती हैं। इस व्रत को विधि-विधान के साथ रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, जिसके चलते जीवन की समस्त बाधाओं का नाश होता है, संतान सुख की अभिलाषा भी पूरी होती है। अक्सर महिलाएं व्रत तो करती हैं, लेकिन जाने-अनजाने में भय, क्रोध, अहंकार, द्वेष आदि के चलते कुछ भूल कर देती हैं, जिससे व्रत का पूर्ण फल नहीं मिल पाता। आइए समझते हैं और दूर करते हैं इन दोषों को।
इस व्रत के दिन जीवनसाथी से किसी बात को लेकर वाद-विवाद या झगड़ा न करें।
यह व्रत मन, वचन और कर्म की शुद्धता के लिए रखा जाता है, अतः इस दिन संकल्प लेना चाहिए कि जीवन भर जीवनसाथी के साथ किसी भी परिस्थिति में छल नहीं करना चाहिए।
इस व्रत के दिन महिलाएं काले, नीले, सफेद वस्त्र बिलकुल भी धारण ना करें और इन रंगों की बिंदी चूड़ी भी ना पहनें। काला-नीला रंग शनि, राहु जैसे पापी ग्रहों से जुड़ा हुआ है, अतः इन रंगों को छोड़कर मांगलिक रंगों का चयन करें।
इस व्रत के दिन महिलाओं को तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए और श्रृंगार भले ही करें लेकिन अमावस्या होने के कारण बाल ना कटवाएं और नाखून न काटें।
इस व्रत के दिन पति-पत्नी को ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए। अमावस्या तिथि पितरों की तिथि होती है, अतः इस दिन शुद्धता एवं पवित्रता पूर्ण कार्य-व्यवहार करें।
इस दिन सुहागिन महिलाएं, यदि संभव हो तो, सूर्यादय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद हरी लाल या पीली रंग की साड़ी पहन कर अचछे से सोलह श्रृंगार करे और पूजन सामग्री को वटवृक्ष यानी बरगद के वृक्ष के नीचे रख लें।
व्रत की विधि अलग-अलग प्रांतों में कुछ अलग-अलग रहती है, अतः अपने घर की बुजुर्ग महिलाओं एवं मान्यताओं के अनुसार ही वटवृक्ष का पूजन, परिक्रमा कर कच्चा धागा लपेटकर मृत्यु के देवता यमराज से घर-परिवार की रक्षा की कामना सच्चे मन से करें।