नई दिल्ली
सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों से स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने जा रही है। हालांकि, 2019 के मुकाबले एनडीए और भाजपा दोनों की सीटों में कमी आई है। एनडीए को 2019 के मुकाबले 60 सीटें कम मिली हैं, जबकि इंडिया अलायंस को 103 सीटें ज्यादा मिली हैं। इंडिया अलायंस को इस बार कुल 232 सीटें मिली हैं, जबकि एनडीए को कुल 293 (बहुमत से 21) सीटें मिली हैं।
भाजपा 240 सीट जीतकर लगातार तीसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। दूसरे नंबर पर कांग्रेस है, जिसे 99 सीटें मिली हैं। इसके बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी है, जिसने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 37 सीटें जीती हैं। चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस है, जिसे 29 सीटें मिली हैं। समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच सबसे बड़ी समानता यह रही कि इन दोनों ही दलों को मुसलमानों ने ये बड़ी जीत दिलाई है। दोनों ही राज्यों (उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) में मुस्लिमों ने निर्णायक रूप से भाजपा के खिलाफ इन दोनों दलों के पक्ष में वोट किया, जिससे इनकी सीटों में बड़ा उछाल दर्ज किया गया है। सपा को 2019 में सिर्फ पांच सीटें मिली थीं जो इस बार करीब आठ गुना होकर 37 पर पहुंच गई है। वहीं टीएमसी जिसे पिछली बार 22 सीटें मिली थीं, उसने इस बार 29 सीटें जीती हैं।
इतना ही नहीं, इन दोनों दलों के अलावा इंडिया गठबंधन के अन्य दलों की सीटों में बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण मुसलमान वोट बैंक ही रहा है। इनके अलावा पिछड़ी और दलित जातियों के गठजोड़ ने भी उन्हें सफलता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। जानकारों का कहना है कि चुनावों के दौरान मुस्लिम विरोधी बयान और माहौल भाजपा के खिलाफ गया। इसके अलावा भाजपा पसमांदा मुसलमानों के बीच पैठ बना पाने में नाकाम रही, जबकि इसके लिए वह लंबे समय से कोशिश कर रही थी।
इसके अलावा पिछड़े आरक्षण के कोटे से मुसलमानों को मिल रहे आरक्षण को हटाने संबंधी भाजपा की घोषणा ने भी मुसलमानों को खासा नाराज किया। TOI की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा ने भले ही चुनाव अभियानों की शुरुआत 2047 तक विकसित भारत के अभियान और अपने विकास के एजेंडे से की हो लेकिन आगे चलकर भाजपा का चुनावी अभियान पूरी तरह से बदल गया। इससे मुस्लिम वर्ग इंडिया अलायंस की तरफ लामबंद हो गया।