जबलपुर
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजमोहन सिंह व न्यायमूर्ति एके सिंह की युगलपीठ ने कैंसर पीड़ित विधवा के हक में राहतकारी आदेश पारित किया। इसके तहत मुख्यमंत्री कोरोना योद्धा योजना के तहत 50 लाख मुआवजे का दावा दरकिनार किए जाने का आदेश अनुचित पाते हुए निरस्त कर दिया। यही नहीं विगत तीन साल से परेशान किए जाने के रवैये को आड़े हाथों लेते हुए राजस्व विभाग पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। यह राशि महिला को मुआवजा बतौर दिए जाने की व्यवस्था दी गई है। दरअसल, याचिकाकर्ता के पति की पन्ना में ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई थी। वे नगर परिषद के मुख्य कार्यपालिक अधिकारी थे। इसीलिए मुख्यमंत्री कोविड योद्धा योजना अंतर्गत 50 लाख मुआवजा दिए जाने की मांग की गई थी।
बेटे को कोरोना योद्धा पुरस्कार दिया गया
खजुराहो निवासी कैंसर पीड़ित महिला राजलक्ष्मी व उनके बेटे की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान अजयगढ़ नगर परिषद में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में उनके पति अरुण पटेरिया पदस्थ थे। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उन्हें रोको-टोको अभियान का दायित्व दिया गया था। ड्यूटी के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमित होने के कारण उनके पति की मृत्यु हुई थी। इसके बाद उनके एवज में बेटे को कोरोना योद्धा पुरस्कार दिया गया था।
दूसरे अधिकारियों की तरह नहीं मिली मुआवजा
याचिका में कहा गया था कि उनके नाम की अनुशंसा मुख्यमंत्री कोरोना योद्धा योजना के तहत मुआवजे के लिए की गई थी। राजस्व विभाग के उप राहत आयुक्त द्वारा प्रस्ताव को दो बार इस आधार पर निरस्त कर दिया कि यह उक्त पुरस्कार के नियमों के पैरा 3.1 के अनुरूप नहीं था। युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि नगर निगम अधिकारी के साथ कोविड ड्यूटी पर रहे डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार की भी कोरोना के कारण मृत्यु हुई थी। जिन्हें विधिवत मुआवजा प्रदान किया गया था। लेकिन मुख्य नगर निगम अधिकारी के परिवार को इससे वंचित कर दिया गया।
युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पैरा 3.1 से पता चलता है कि कोविड को कम करने के लिए जो सरकारी कर्मचारी वास्तव में सेवा में शामिल थे, वे पात्र थे। याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु ड्यूटी के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमित होने के कारण हुई है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद उक्त आदेश जारी करते हुए याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान की।