भोपाल
मध्य प्रदेश में लोकसभा की सभी 29 सीटों पर पहली बार मिली बुरी हार के बाद कांग्रेस निराश और हताश है. न युवा नेतृत्व अच्छा रिजल्ट दे सका, न बुजुर्ग नेता अपने गढ़ बचा पाए. ऐसी स्थिति में कांग्रेस असमंजस में है. पार्टी सोच रही है कि आखिर हुआ क्या और भविष्य की हवा क्या है? साल 2014 और साल 2019 में जब मोदी लहर अपने चरम पर थी तब भी कांग्रेस अपने गढ़ गुना और छिंदवाड़ा को बचाने में कामयाब रही थी. लेकिन, अब स्थिति बिल्कुल उलट है. चुनौती पहले से कहीं बड़ी है कि युवा नेतृत्व पर ही भरोसा किया जाए या बुजुर्गों पर. कांग्रेस भी मानती है कि पार्टी में बड़ी सर्जरी जरूरी है. इसकी आंच मध्य प्रदेश तक भी आएगी.
कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व सांसद कांतिलाल भूरिया और नकुलनाथ की हार को पार्टी की नहीं बल्कि बड़े नेताओं की व्यक्तिगत हार मान रही है. पार्टी हाईकमान का प्रदेश में युवाओं को जिम्मेदारी देने का प्रयोग भी इस चुनाव में पूरी तरह से फेल हो गया. कांग्रेस ने हाल ही में जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उमंग सिंघार को नेता प्रतिपश्र बनाया था. माना जा रहा था कि कांग्रेस में इस परिवर्तन के बाद नई पीढ़ी उनके साथ जुड़ेगी. इसी दम पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में डबल डिजिट में आने का दम भर रही थी, लेकिन, कांग्रेस मध्य प्रदेश में खाता भी नहीं खोल पाई.
युवा नेतृत्व पर खड़े हो गए सवाल
ऐसे में पटवारी और सिंघार के भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस को पहले कोई मजबूत अध्यक्ष चुनने की जरूरत है. राजनीतिक विशेषज्ञ दिनेश निगम त्यागी ने कहा कि दिग्विजय सिंह को राजगढ़ और नकुलनाथ को छिंदवाड़ा में मिली हार से पार्टी के बुजुर्ग नेताओं के भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं. अब यह कांग्रेस आलाकमान तय करेगा कि इन नेताओं को फ्रंट लाइन पर रखना है या बैकफुट पर. कांग्रेस में बुजुर्ग नेताओं की भूमिका देखी जाए तो दिग्विजय सिंह प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ते थे, लेकिन हर चुनाव में उनकी अहम भूमिका रहती है. इस बार लड़े तो हार गए.
बीजेपी की लहर में भी नहीं हारे थे कमलनाथ
कमलनाथ लगातार 45 साल से छिंदवाड़ा में जीतते आए हैं. वे मोदी के नाम की सुनामी में भी नहीं हारे, लेकिन 2024 की हार ने नकुलनाथ के करियर पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए ड्रामे और अब छिंदवाड़ा जीत के बाद बीजेपी को उनकी जरूरत नहीं भी नहीं है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं का क्या होगा?