अंबाला
हरियाणा के लोकसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिली। पिछले चुनाव में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार पांच सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस ने पांच सीटें जीतने के साथ ही यह संदेश दे दिया है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए लड़ाई बेहद कठिन रहने वाली है।
कांग्रेस ने गठबंधन करते हुए एक सीट आम आदमी पार्टी को दी थी और 9 सीटों पर खुद चुनाव लड़ा था।
किसे कहां से मिली जीत
सीट सांसद का नाम राजनीतिक दल
अंबाला वरुण चौधरी कांग्रेस
सिरसा कुमारी सैलजा कांग्रेस
कुरूक्षेत्र नवीन जिंदल बीजेपी
करनाल मनोहर लाल खट्टर बीजेपी
सोनीपत सतपाल ब्रह्मचारी कांग्रेस
रोहतक दीपेंद्र सिंह हुडा कांग्रेस
हिसार जय प्रकाश कांग्रेस
भिवानी-महेंद्रगढ़ धर्मबीर सिंह बीजेपी
गुड़गाँव राव इंद्रजीत सिंह बीजेपी
फरीदाबाद कृष्ण पाल गुर्जर बीजेपी
हरियाणा में 2005 से लेकर 2014 तक कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में सरकार चलाई थी। बीजेपी साल 2014 में पहली बार अपने दम पर हरियाणा में सत्ता में आई थी। इसके बाद उसने 2019 में भी अपनी सरकार बनाई लेकिन उसकी सीटों का आंकड़ा कम हुआ था। 2014 में 90 सीटों वाली हरियाणा में 47 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 2019 में 40 सीटें जीती थी और उसे जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन करना पड़ा था।
गठबंधन के तहत उसने जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला को उप मुख्यमंत्री बनाया था। इस साल फरवरी में बीजेपी ने जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था। इसके साथ ही पार्टी ने अपने नेतृत्व में भी बदलाव किया था।
2014 से लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे मनोहर लाल खट्टर की जगह पर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी।
मनोहर लाल खट्टर के बाद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर भाजपा ने इस बात का साफ-साफ संदेश दिया था कि वह हरियाणा में गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ेगी। हरियाणा में 25% आबादी जाट समुदाय की है और इस तरह गैर जाट समुदाय 75% है। मुख्यमंत्री बनने से पहले सैनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और इस तरह सरकार और संगठन के दोनों बड़े पदों पर भाजपा ने गैर जाट नेताओं को बैठाया था।
46 पर इंडिया और 44 पर बीजेपी रही आगे
लोकसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे सामने आए हैं, उससे बीजेपी की राह मुश्किल दिखाई देती है क्योंकि 90 में से 44 सीटों पर बीजेपी आगे रही है जबकि 46 सीटों पर इंडिया गठबंधन। कांग्रेस ने जिन 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से वह 42 विधानसभा सीटों और आम आदमी पार्टी अपने हिस्से में आई कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट की चार विधानसभा सीटों पर आगे रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 79 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी लेकिन विधानसभा के चुनाव नतीजे आने पर वह सिर्फ 40 सीटें ही जीती थी। ऐसे में उसके लिए इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से चिंताजनक है।
ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस, शहरों में बीजेपी आगे
लोकसभा चुनाव के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का दबदबा कायम है। इन इलाकों में जाट समुदाय का समर्थन भी कांग्रेस के साथ रहा है। उदाहरण के लिए भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार राव दान सिंह को जाट बहुल इलाके लोहारू, बाढड़ा और दादरी में लीड मिली लेकिन उन्हें यादव बहुल विधानसभा क्षेत्रों में कम समर्थन मिला और इस वजह से वह चुनाव हार गए। इसी तरह सोनीपत से कांग्रेस के उम्मीदवार सतपाल ब्रह्मचारी को जाट समुदाय के वर्चस्व वाले विधानसभा क्षेत्र- खरखौदा, गोहाना, बरोदा और जुलाना में लीड मिली और इससे उनकी जीत का रास्ता साफ हुआ।
दूसरी ओर बीजेपी को शहरी और अर्ध शहरी विधानसभा क्षेत्रों में लीड मिली है। बीजेपी को करनाल, पानीपत (शहरी) सोनीपत, हिसार, फरीदाबाद, गुड़गांव और बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र में बढ़त मिली है। इसके अलावा अहीरवाल के इलाकों में भी बीजेपी को बढ़त मिली है।
उम्मीदों से भरी हुई है कांग्रेस, वोट शेयर बढ़ा
हरियाणा में कांग्रेस ने पांच लोकसभा सीटें तो जीती ही हैं, अपना वोट प्रतिशत भी बढ़ाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा में 28.51 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि इस बार उसे 43.67% वोट मिले हैं। बीजेपी को पिछली बार 58.21% वोट मिले थे जबकि इस बार उसका वोट प्रतिशत घटा है और वह 46.11% वोट लाई है।
निश्चित रूप से बीजेपी के वोट शेयर में जबरदस्त गिरावट आई है जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है। ऐसे में बीजेपी का राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व आने वाले दिनों में हरियाणा के लिए एक नई रणनीति के साथ काम करता दिख सकता है।
किसानों ने किया था विरोध
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान किसानों का गुस्सा सातवें आसमान पर देखने को मिला था। पूरे राज्य में बीजेपी उम्मीदवारों को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निवीर योजना और महिला पहलवानों के यौन शोषण के मुद्दे पर भी हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ लोगों का गुस्सा दिखाई दिया था।
कांग्रेस के पास हुड्डा, बीजेपी के पास खट्टर और सैनी
कांग्रेस के पास जहां हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रूप में एक हैवीवेट जाट चेहरा है, वहीं बीजेपी के पास गैर जाट चेहरों के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान भी गैर जाट समुदाय (दलित समुदाय) से आते हैं। ऐसे में जातियों की सियासी गुणा-गणित के बीच विधानसभा चुनाव की चुनौती बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही कठिन है।
बीजेपी ने जाट समुदाय से आने वाले पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सुभाष बराला को राज्यसभा का सदस्य बनाया है और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी है। लेकिन ऐसा लगता है कि जाट समुदाय के बीच में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए पार्टी एक बार फिर किसी जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है।
कांग्रेस के पांच में चार सांसद ऐसे हैं, जिन्हें भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सिफारिश पर टिकट मिला था। इसमें सतपाल ब्रह्मचारी सोनीपत से, वरुण चौधरी अंबाला से, जयप्रकाश हिसार से और हुड्डा के बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम शामिल है।
कांग्रेस ने किया था जबरदस्त कम बैक
कांग्रेस ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त कम बैक किया था। लोकसभा चुनाव में सभी सीटें हारने के बाद अगले 6 महीने के भीतर हुए विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थी जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 15 सीटों पर जीत मिली थी।
अकेले उतरने को मजबूर है बीजेपी
बीजेपी लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के बाद इस बात को लेकर चिंतित है कि कहीं वह पिछली बार की तरह बहुमत से दूर ना रह जाए। क्योंकि अब उसने जेजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ लिया है, ऐसे में उसे विधानसभा चुनाव में अकेले ही जाना पड़ेगा। जेजेपी भी गठबंधन तोड़े जाने से बेहद नाराज है और उसने कांग्रेस से कहा है कि वह सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी तो जेजेपी उसका समर्थन करेगी।