इंदौर
दो बार की लोकसभा सांसद 46 साल की सावित्री ठाकुर अब देश की मंत्री बन गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल सदस्य के रूप में सावित्री ठाकुर ने रविवार को पद और गोपनीयता की शपथ ली। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से लोकसभा पहुंचीं सावित्री ने धर्मपुरी तहसील के तारापुर गांव से दिल्ली तक का सफर दूसरों की जिंदगी बदलते हुए तय किया है। मालवा क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं और किसानों की बेहतरी लिए वह सालों तक कठिन परिश्रम करती रहीं।
'दीदी' के नाम से पहचान रखने वाली ठाकुर ने कांग्रेस उम्मीदवार राधेश्याम मूवेल को 2 लाख से अधिक वोट से हराया। उन्होंने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत 1996 में की थी। एक स्वंयसेवी संगठन में शामिल होकर धार में आदिवासी और गरीब महिलाओं की जिंदगी बदलने के लिए काम करती रहीं। महिलाओं को छोटे लोन दिलाना, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और शराबबंदी की कोशिशों में उन्होंने अथक मेहनत की। 10वीं पास सावित्री ठाकुर एक दशक तक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद राजनीति में 2003 में आईं।
ठाकुर अपने परिवार की पहली सदस्य हैं जिसने राजनीति में प्रवेश किया। उनके पिता वन विभाग से रिटायर हैं तो पति एक किसान। 2003 में सावित्री भाजपा में शामिल हुईं और जिला पंचायत सदस्य बनी। एक साल बाद ही पार्टी ने उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी। 2014 में ठुकार को धार सीट से उतारा गया और उन्होंने एक लाख वोट से जीत हासिल की। 2019 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इस बार फिर पार्टी ने सावित्री पर दांव लगाया और उन्होंने निराश नहीं किया।
सावित्री ने संगठन में भी कई जिम्मेदारियों में काम किया है। वह 2010 में जिला उपाध्यक्ष बनीं। 2013 में वह कृषि उपज मंडी धामनोड की निदेशक बनीं। 2017 में सावित्री को किसान मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। अभी वह आदिवासी महिला विकास परिषद की राष्ट्रीय महासचिव हैं। नेता के रूप में सावित्री की प्रगति को करीब से देखने वाले धार के राजनीतिक जानकार योगेंद्र शर्मा कहते हैं, 'सावित्री देश की महिला किसान नेताओं में से एक हैं। वह बेहद विनम्र नेता हैं और किसानों और महिलाओं के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहती हैं। दो दशक से अधिक समय से वह खाद बीज के मुद्दों को उठाती रहीं। गांवों में शराब की दुकानों का भी उन्होंने खूब विरोध किया।'
शर्मा आगे कहते हैं, 'ठाकुर को मोदी कैबिनेट में शामिल करने से भाजपा को कांग्रेस के आदिवासी गढ़ में मदद मिल सकती है। धार की 8 विधानसभा सीटों में से पांच पर अभी कांग्रेस का कब्जा है।'