बेंगलुरु
लोकसभा चुनाव में कर्नाटक कांग्रेस को जितनी अपेक्षा थी उससे खराब प्रदर्शन रहा। पार्टी ने 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन महज 9 सीटों से ही कांग्रेस को संतोष करना पड़ा। कर्नाटक विधानसभा में प्रचंड जीत का कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में कोई फायदा नहीं मिला। अब सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर पांच गारंटियों के पुनर्मूल्यांकन की मांग करने वाली आवाजें तेज हो गई हैं क्योंकि कांग्रेस इन कार्यक्रमों पर सालाना 52,000 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा करने के बाद भी लोकसभा चुनावों में दूसरे स्थान पर रही। गारंटी के वादे के साथ पार्टी पिछले साल विधानसभा चुनावों में सत्ता में आई थी, जिसके तहत एक के बाद एक कार्यक्रम शुरू किए गए। योजनाओं में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, महीने में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली की आपूर्ति और परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2000 रुपये देने का वादा शामिल है।
पार्टी ने कर्नाटक में शुरू किए गए मॉडल को अन्य राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ हाल के लोकसभा चुनावों में भी दोहराया। लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस विधायक एचसी बालकृष्ण (मगदी) ने सबसे पहले 'मुफ्त की रेवड़ियों' को लेकर विचार का सुझाव दिया था।
हमारे नेताओं को अपने गांव में ही वोट नहीं मिले
कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के नतीजों पर शिवकुमार ने कहा, "हमें 14-15 सीटें जीतने का भरोसा था, लेकिन हम इन आंकड़ों को हासिल करने में विफल रहे। हमें लोगों के फैसले को स्वीकार करना होगा। पार्टी के नेताओं को अपने ही गांव-कस्बों से वोट नहीं मिले, यह चिंता की बात है।''
हार के लिए कौन जिम्मेदार
हार के लिए विधायकों को जिम्मेदार ठहराने वाले कुछ मंत्रियों की टिप्पणियों पर शिवकुमार ने कहा, "किसी ने भी मुझसे इसकी शिकायत नहीं की है। आरोप-प्रत्यारोप का कोई मतलब नहीं है। जो नेता निर्वाचन क्षेत्रों के प्रभारी हैं, उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करनी चाहिए, कारणों की जांच करनी चाहिए।" उन्होंने विधायक बसवराज शिवगंगा के एक बयान का जिक्र करते हुए सलाह दी कि विधायकों को अनावश्यक रूप से सार्वजनिक रूप से बयान जारी नहीं करना चाहिए। उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर समस्या पर चर्चा करनी चाहिए।
20 का था लक्ष्य, मिलीं 9 सीटें
एचसी बालकृष्ण ने कहा था कि अगर पार्टी चुनाव में खराब प्रदर्शन करती है तो पार्टी शासन को गारंटी योजनाओं को वापस लेने पर विचार करना चाहिए। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष डीके शिवकुमार को राज्य की 28 सीटों में से 15 से 20 सीटें जीतने का भरोसा था, लेकिन पार्टी को 9 सीटें ही मिलीं।
एम लक्ष्मण ने भी की समीक्षा की मांग
मुख्यमंत्री के गृह जिले मैसूर से कांग्रेस के टिकट एम लक्ष्मण चुनाव हार गए थे। उन्होंने भी योजनाओं की समीक्षा की मांग की है। उनका तर्क है कि लोकसभा चुनावों में लोगों के जनादेश से पता चलता है कि वे योजनाओं को जारी रखने के खिलाफ हैं।
कांग्रेस के बागलकोट जिले के जेटी पाटिल (बिलगी) ने भी समीक्षा की मांग की है। कांग्रेस विधायकों के एक वर्ग का मानना है कि गारंटी योजनाएं अन्य विकास कार्यक्रमों की कीमत पर आई हैं और इनसे वोट भी नहीं मिले हैं।