नई दिल्ली
भारतीय फार्मा इंडस्ट्री के निर्यात की वृद्धि दर मई में दोहरे अंक में पहुंच गई है। इसकी वजह यूएस और यूके से जेनेरिक दवाइयों की मजबूत मांग का होना है। मई 2024 में भारत का फार्मा निर्यात 10.45 प्रतिशत बढ़कर 2.30 अरब डॉलर हो गया है, जो कि पिछले वित्त वर्ष समान अवधि में 2.08 अरब डॉलर था।
फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल, रवि उदय भास्कर ने कहा कि फिलहाल ये सकारात्मक रूप से बढ़ रहा है और हमें उम्मीद है कि वृद्धि दर 10 प्रतिशत से नीचे नहीं आएगी। वॉल्यूम के हिसाब से भारत मौजूदा समय में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल्स उत्पादक देश है।
फार्मेक्सिल के मुताबिक, भारतीय फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट्स के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत के फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट में अमेरिका की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी।
भास्कर की ओर से कहा गया कि लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों जैसे डायबिटीज, बीपी और डिप्रेशन के इलाज के लिए दवाओं के बढ़ते उपयोग से भारत की सस्ती कीमत वाली दवाओं की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
इंडिया रेटिंग्स और रिसर्च की ओर से रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका में दवाइयों की कमी के कारण 2024-25 में भारतीय फार्मा कंपनियों की आय में बढ़त जारी रहेगी। भारत जेनेरिक दवाइयों का हब है। डॉ रेड्डीज, सिप्ला और सनफार्मा जैसी फार्मा कंपनियां इन दवाइयों की मैन्युफैक्चरिंग करती हैं और इनके पास अमेरिका और यूरोप में अच्छा मार्केट शेयर है।
यूटा ड्रग इनफार्मेशन सर्विस के डेटा का हवाला देते हुए इंडिया रेटिंग ने अपने नोट में कहा था कि अमेरिका में दवाइयों की कमी दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गई है।
नोट में एयूएसएफडीए के डेटा के हवाले कहा गया कि अप्रैल में 233 दवाइयों की कमी थी। इसकी वजह उन दवाइयों का उत्पादन बंद होना, विकल्प मिलने में देरी और मांग अधिक होना था।