वैसे तो त्वचा और उसके रंग का रिश्ता बहुत ही पुराना है। अंग्रेजों से लेकर तमाम शोषक वर्गों ने इसे हथियार बनाया है। इतना ही नहीं, शादियों के इश्तिहार में भी मांग उनकी ही ज्यादा होती है जिनका रंग साफ यानी की फेयर होता है। गोरे रंग पर लोग भले ही आज भी गुमान करते हो, लेकिन ये भी सच है कि जिनका रंग जितना साफ होता है, उन पर धूप का असर उतना ही ज्यादा पड़ता है।
जी हां, गर्मी और बरसात के मौसम में त्वचा से जुड़ी कुछ परेशानियां भी बढ़ जाती हैं। इससे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वो कौन-सी परेशानियां हैं और उनके निदान क्या हैं? इस बारे में देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती।
क्या बताया एक्सपर्ट ने?
हमारे शरीर का सबसे बाहरी भाग स्किन होता है। ये त्वचा ही है जो सबसे पहले धूप, बारिश, सर्दी के संपर्क में आती है। इसलिए हमारे शरीर में इन चीजों से सबसे पहले त्वचा ही प्रभावित होती है। स्किन का रंग भी हमारी ज्योग्राफिकल स्थिति पर काफी हद तक निर्भर करता है। मसलन, आपने देखा होगा कि पहाड़ों पर रहने वाले लोग अमूमन गोरी त्वचा वाले होते हैं। वहीं मैदानी इलाकों में रहने वाले मिक्स्ड या सांवले रंग के होते हैं।
जब टेंशन में आ गए स्वरूप
स्वरूप 32 साल के हैं। वो एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। जॉब की वजह से उन्हें हर मौसम में शहरभर में घूमना पड़ता है। धूप में ज्यादा चक्कर लगाने की वजह से उनकी त्वचा का रंग (बांह के नीचे का हिस्सा) हल्का काला होने लगा। चूंकि वो गोरे रंग के हैं, इसलिए त्वचा का यह बदलाव साफ-साफ दिख रहा था। इस पर उन्हें किसी जानने वाले ने कह दिया कि इस तरह की टैनिंग से कैंसर भी हो सकता है। इसलिए इस पर जरूर ध्यान देना। अपने जानकार की बात सुनकर वो डर गए। स्वरूप ने फटाफट डर्मेटोलॉजिस्ट से मुलाकात करने की सोची। वो डॉक्टर के पास पहुंच गए।
क्या कहा डॉक्टर ने?
स्वरूप ने डॉक्टर को टैन वाला हिस्सा दिखाया। डॉक्टर ने कहा कि इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। आप धूप में ज्यादा घूमते हैं, इसलिए यो डार्क हुआ है। इसमें स्किन कैंसर वाली कोई भी बात नहीं है और न ही आप में स्किन कैंसर के कोई लक्षण हैं। भले ही आप फेयर हैं, लेकिन यूरोपीय लोगों की तुलना में काफी कम हैं। विदेश (यूरोप, अमेरिका आदि देशों) में स्किन कैंसर के मामले ज्यादा हैं क्योंकि वहां के लोग बहुत ज्यादा गोरे यानी वाइट होते हैं।
अपने देश में धूप (UV रेज) की वजह से स्किन कैंसर के मामले बहुत ही कम होते हैं। हां, टैनिंग, सनबर्न जैसी परेशानियां ज़रूर हैं। डॉक्टर ने स्वरूप को सुझाव दिया कि आप कोई अच्छी सनस्क्रीन लगाकर निकला करें या फिर बाजुओं को किसी कपड़े से कवर करके। ये धीरे-धीरे कम हो जाएगा। इन बातों को सुनकर स्वरूप का डर कम हुआ। उसने सनस्क्रीन लगाना शुरू किया।
यूवी रेज के भी होते हैं प्रकार
सूरज की किरणों में 3 तरह की अल्ट्रावायलेट (UV) रेज निकलती हैं
1. UV A- ये सबसे ज्यादा खतरनाक किरणें हैं, जो स्किन के बहुत अंदर तक पहुंच जाती हैं और झुर्रियां पैदा करने में
अहम भूमिका निभाती हैं।
2. UV B- ये UV A की तुलना में कम खतरनाक हैं। UV A और UV B से ही बचने के लिए सनस्क्रीन की जरूरत होती हैं।
3. UV C- ये किरणें हम तक नहीं पहुंच पातीं। ये पहले ही धरती पर आने से पहले ओजोन लेयर द्वारा रिफ्लेक्ट कर दी जाती हैं यानी वापस भेज दी जाती हैं।
शरीर की भी अपनी सनस्क्रीन
हमारी स्किन में मेलेनिन नाम का पिग्मेंट होता है, जिसे नेचुरल सनस्क्रीन कहा जा सकता है। जैसे ही हमारे शरीर पर ज्यादा मात्रा में यूवी रेज यानी तेज धूप पड़ती है तो मेलेनिन पिग्मेंट त्वचा की ऊपरी सतह की ओर आने लगता है। इस वजह से यूवी त्वचा के अंदर तक नहीं पहुंच पाती और नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं। हमें सनस्क्रीन की जरूरत अमूमन तब होती है जब ज्यादा मात्रा में मेलेनिन निकलने की वजह से स्किन का कलर ज्यादा डार्क होने लगे या फिर स्किन में मेलेनिन की कमी की वजह से सनबर्न की स्थिति बने।