नागपुर
किसानों की आत्महत्या मामले में महाराष्ट्र टॉप पर रहता है। पिछले कुछ वर्षों में कपास उत्पादक यवतमाल जिले को महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की राजधानी के रूप में जाना जाता रहा है। अब यहां का सीन बदल रहा है। यवतमाल की जगहग इन दिनों पड़ोसी अमरावती जिले में किसानों की आत्महत्या की संख्या बढ़ रही है। आंकड़े देखें तो डरा देने वाले हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या अमरावती में ही की है। यवतमाल की सीमा से लगा अमरावती कपास और सोयाबीन का उत्पादक क्षेत्र है। इतना ही नहीं प्रसिद्ध नागपुर संतरे की खेती भी यहीं होती है।
इस साल मई तक अमरावती में 143 किसानों ने आत्महत्या की है। यह भी आंकड़े महाराष्ट्र सरकार के हैं। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पांच महीनों में 152 दिनों में लगभग हर दिन एक किसान ने आत्महत्या की है।
दूसरे नंबर पर यवतमाल
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के मामले में दूसरे नंबर पर यवतमाल है। हालांकि दोनों जिलों में किसानों की आंत्महत्या के आंकड़ों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। मई 2024 तक 132 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं। जून के आंकड़े अभी संकलित किए जाने बाकी हैं।
डरा देंगे आंकड़े
अमरावती ने 2021 से आत्महत्या के मामले में यवतमाल को पीछे छोड़ दिया है। 2021 में यवतमानल में 370 किसानों ने आत्महत्या की थी। 2022 में 349 और 2023 में 323 किसानों ने आत्महत्या की। यवतमाल में 2021 से 2023 तक यह संख्या क्रमशः 290, 291 और 302 रही।
क्यों आत्महत्या कर रहे महाराष्ट्र के किसान?
कृषि कार्यकर्ता और किसानों पर महाराष्ट्र सरकार की टास्क फोर्स वसंतराव नाइक शेतकरी स्वावलंबन मिशन के पूर्व अध्यक्ष किशोर तिवारी ने इस पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि अमरावती में स्थिति विशेष रूप से कठिन है। किसानों ने सोयाबीन की खेती की और उपज में उल्लेखनीय गिरावट देखी। पिछले साल दरें गिरकर 4,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गईं। पर्याप्त बैंकिंग ऋण की कमी के कारण, कई लोग छोटी वित्त कंपनियों या साहूकारों पर निर्भर हैं, और उन्हें कठोर वसूली का सामना करना पड़ता है।
महाराष्ट्र के 6 जिलों पर खास नजर
2001 से राज्य सरकार विदर्भ के छह जिलों अमरावती, अकोला, यवतमाल, वाशिम, बुलढाणा और वर्धा में किसानों की आत्महत्याओं का डेटा रख रही है। दो दशकों में इन जिलों में 22,000 से ज़्यादा आत्महत्याएं हुई हैं।
किसानों की आत्महत्याओं का इस तरह विभाजन
आत्महत्याओं को उन किसानों के बीच विभाजित किया जाता है जो राज्य सरकार से 1 लाख रुपये के मुआवजे के पात्र हैं और जो नहीं हैं। एक जिला स्तरीय समिति यह जांच करती है कि आत्महत्या कृषि संकट या अन्य कारणों से हुई है या नहीं। मुआवजे के पात्र होने के लिए, पीड़ित को ऋण, वसूली दबाव, फसल की विफलता और खेती से संबंधित अन्य संकटों का सामना करना पड़ा होगा।
अमरावती में मई तक दर्ज 143 आत्महत्याओं में से 33 में कृषि संकट का मामला दर्ज है। 10 मामले खारिज कर दिए गए हैं और 100 में जांच जारी है। यवतमाल में मई तक दर्ज 132 आत्महत्याओं में से 34 में कृषि संकट को आधिकारिक कारण बताया गया है। 66 मामलों में जांच जारी है और जिला प्रशासन ने 32 को खारिज कर दिया है।