पटना
उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से मायने रखते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव नतीजों को देखें तो संविधान बदलने, आरक्षण पर संकट जैसी चर्चाओं ने विपक्ष को बल दिया तो वहीं भाजपा को करारा झटका लगा है। इसके अलावा जातीय समीकरण बदले तो नतीजा भी बदला दिखा है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की अवध और पूर्वांचल के इलाकों में जीत के पीछे गैर-यादव ओबीसी नेताओं को बड़े पैमाने पर टिकट मिलना भी एक वजह है। इनमें कुर्मी, कोरी, कुशवाहा समाज के नेताओं को टिकट देकर अखिलेश यादव ने फायदा उठा लिया और यहीं पर भाजपा चूक कर गई।
अब भाजपा इस कमी को दूर करने की कोशिश में है। एक तरफ यूपी में समाज के कुछ नेताओं को प्रमोट किया जा सकता है तो वहीं बिहार में भी मंथन का दौर चल रहा है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि बिहार में अगले ही साल चुनाव हैं और उससे पहले कुशवाहा समाज को जोड़ने के लिए उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा जा सकता है। उन्हें काराकाट लोकसभा से हार का सामना करना पड़ा था। वह कुशवाहा बिरादरी के बड़े नेताओं में से हैं। ऐसे में उन्हें राज्यसभा भेजकर भाजपा समाज को यह संदेश देना चाहेगी कि हम आपके साथ हैं। यही नहीं नीतीश कुमार की जेडीयू भी इसी कोशिश में है और उसने भगवान सिंह कुशवाहा को विधान परिषद भेजने का ऐलान किया है और वह 2 जुलाई को नामांकन दाखिल करेंगे।
बिहार में खाली हो रहीं राज्यसभा की दो सीटें
बिहार में राज्यसभा की दो सीटें खाली हैं और उनमें से एक उपेंद्र कुशवाहा को मिलेगी। वहीं पार्टी ने सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष का पद दे ही रखा है, जो कुशवाहा समाज के ही हैं। राज्य में कुशवाहा बिरादरी की 4.2 फीसदी आबादी है। दिलचस्प बात यह है कि इस वर्ग पर आरजेडी की भी नजर है, जो अब तक यादव और मुस्लिम समीकरण पर ज्यादा फोकस करती थी। उसने लोकसभा में पहली बार के सांसद अभय कुशवाहा को अपना नेता चुना है। बीते 20 सालों से लव-कुश समीकरण नीतीश कुमार का आधार रहा है, लेकिन आरजेडी ने इस बार सेंध लगाई है। ऐसे में नीतीश और भाजपा दोनों ही इस पर काम कर रहे हैं।
बिहार में आरजेडी और यूपी में सपा को लगता है कि इस वोट में सेंध लगाकर भाजपा और जेडीयू को नुकसान पहुंचाया जा सकता है। बिहार में INDIA अलायंस ने कुशवाहा समाज के 7 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 2 ने जीत हासिल की। इसके अलावा 5 ने एनडीए की जीत के अंतर को काफी कम कर दिया। 2019 के मुकाबले यह बड़ा उलटफेर था। इसके अलावा आरजेडी को लगता है कि अब जेडीयू के रिजर्व वोट में भी वह सेंध लगा सकती है।