भोपाल
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में दो माह के अंदर लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा मिलना शुरू हो जाएगी। इसके बाद यहां लंग्स का ट्रांसप्लांट की तैयारियां की जाएंगी। दरअसल, अब तक किडनी ट्रांसप्लांट होता था, लेकिन बीते कुछ महीनों से यहां लिवर की समस्या लेकर पहुंचने वाले मरीजों की संख्या में करीब 10 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हो चुका है। इसे देखते हुए लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आधुनिक मशीनें मंगवा ली गई हैं और इनके इंस्टालेशन का काम चल रहा है।
बता दें कि लिवर ट्रांसप्लांट एक सर्जरी है जिसमें आपके बीमार या डैमेज लिवर को निकालकर उसकी जगह किसी दूसरे व्यक्ति के स्वस्थ लिवर का हिस्सा लगाया जाता है। लिवर का हिस्सा देने वाले को डोनर कहते हैं। अगर आपका लिवर ठीक से काम करना बंद कर देता है, जिसे लिवर फेलियर कहते हैं, तो लिवर ट्रांसप्लांट आपकी जान बचा सकता है। यह सुविधा अब तक निजी अस्पतालों में थी।
एडवांस डायलिसिस यूनिट लगाने की तैयारी
इधर, एडवांस डायलिसिस यूनिट में अब तक एक माह में 300 लोगों का डायलिसिस होता था। अब यहां 500 लोगों का डायलिसिस हो पाएगा। नेफ्रोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. महेंद्र अटलानी ने बताया कि एडवांस डायलिसिस यूनिट को और बेहतर बनाने की तैयार की जा रही है। इसके बाद यहां डायलिसिस की संख्या बढ़ जाएगी। इसके लिए एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) और कंटीन्यूअस रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी (सीआरआरटी) के प्रबंधन काम किया जा रहा है। विटिलिगो यानी सफेद दाग किसी को भी हो सकता है, किंतु इलाज के द्वारा रंग बदलने की प्रक्रिया रुक सकती है। इससे काफी हद तक त्वचा का रंग वापस भी आ सकता है।
एम्स डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने बताया कि सफेद दाग को लेकर समाज में जिस तरह की भ्रांतियां मौजूद हैं, उससे मरीज मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। हमें उस मरीज को मानसिक रूप से भी सशक्त बनाना होगा। यह एक ऐसी बीमारी है जो त्वचा के रंग को धब्बों में बदल देती है और रंगहीन क्षेत्र आमतौर पर समय के साथ बड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि जैसे ही इसके लक्षण दिखाई पड़े तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। एम्स भोपाल के त्वचा विज्ञान विभाग द्वारा जैव रसायन और सामुदायिक एवं पारिवारिक चिकित्सा विभाग के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।