नई दिल्ली
1999 में कारगिल जंग पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा भोंका था। एक तरफ तो शांति की बात, दूसरी ओर युद्ध छेड़ना। इस युद्ध को जीतने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया था। वहीं, पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के लिए ऑपरेशन कोपाइमा चलाया था। इस ऑपरेशन का यह नाम उर्दू में पड़ा था। कोपाइमा का मतलब होता है-वो इंसान जो पहाड़ियां चढ़ सकता है। इस युद्ध के पीछे इंटेलीजेंस फेलियर भी था। एक्सपर्ट से जानेंगे कि कारगिल की जंग जीतने के लिए भारतीय सेना ने किस तरह की रणनीति अपनाई थी। यह कितनी कारगर रही थी। उस चक्रव्यूह के बारे में भी जानेंगे जिसके जाल में फंसकर पाकिस्तानी सेना को बुरी हार देखनी पड़ी थी।
इंटेलीजेंस फेलियर था कारगिल युद्ध
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, कारगिल पर कब्जा करने की पाकिस्तान की कार्रवाई जनवरी, 1999 से शुरू हुई थी, मगर भारत का इसका पता चला मई, 1999 के आखिर में। तब भारत ने ऑपरेशन विजय चलाया था। जनवरी से मई तक 6 महीने तक सेना को यह नहीं पता चला कि पाकिस्तानी फौजी हमारे बनाए हुए हमारे पहाड़ों पर बने मोर्चों पर वो तैनात हो गए हैं। यह एक बड़ी चूक थी।
पता लगते ही भारतीय सेना ने क्या किया
भारतीय सेना को जैसे ही यह जानकारी पता चली कि पाकिस्तानी फौजियों ने हमारी कुछ चौकियों पर कब्जा कर लिया तो भारत ने इसे पूर्ण रूप से युद्ध मानते हुए पाकिस्तानियों को अपने मोर्चे से खदेड़ने की रणनीति अपनाई। अपने हर मोर्चे और कब्जे वाली हर इंच जमीन से पाक फौजियों को भगाने के लिए मल्टी प्रोन अटैक की स्ट्रैटजी अपनाई। भारत की जीत की शुरुआत टाइगर हिल्स पर दोबारा कब्जे के साथ हुई थी, जो 4 जुलाई, 1999 को पाकिस्तानी फौजियों को हराने के साथ संपन्न हुई थी।
पहाड़ों पर लड़ाई में 1 के मुकाबले 9 सैनिक
भारतीय सेना आमतौर पर किसी भी लड़ाई के लिए अटैकर टू डिफेंडर रेश्यो 3:1 अपनाती है। इसका मतलब यह होता है कि दुश्मन के 1 फौजी के मुकाबले भारतीय सेना के 3 जवान तैनात किए जाते हैं। यह रणनीति पहाड़ों में बदल जाती है। पहाड़ों में अटैकर टू डिफेंडर का अनुपात 9:1 होता है। इसका मतलब यह है कि पहाड़ों की लड़ाई में दुश्मन के 1 फौजी के मुकाबले भारत के 9 जवान तैनात किए जाते हैं। कारगिल में भी यही रणनीति अपनाई गई थी।
15-16 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन को हराया
पाकिस्तान ने कारगिल में 15-16 हजार की फीट पर हमारे कई मोर्चों पर कब्जा कर लिया था। जवाब में भारतीय सेना के जवानों ने मुश्किल इलाकों से होते हुए पाकिस्तानी फौजों पर हमला बोला था। इस स्ट्रैटेजी से पाकिस्तानी पस्त हो गए थे। भारत ने कारगिल के हर इंच को छुड़ा लिया था।
भारतीय सेना ने तोपों से टार्गेट को सॉफ्ट कर दिया
भारतीय सेना ने बड़ी-बड़ी तोपों से टार्गेट को पहले सॉफ्ट कर दिया था। सेना की भाषा में सॉफ्ट करने का मतलब है दुश्मन के ठिकानों को तहस-नहस कर देना। भारतीय सेना ने वायुसेना का भी इस्तेमाल किया था, जिससे यह जंग जीतना और आसान हो गया।
कारगिल जंग में 2.5 लाख दागे गए थे गोले
कारगिल युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान करीब 2.5 लाख गोले दागे गए। वहीं 5,000 बम फायर करने के लिए 300 से ज्यादा मोर्टार, तोपों और रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया। युद्ध के 17 दिनों में हर रोज प्रति मिनट में एक राउंड फायर किया गया। यह ऐसा युद्ध था जिसमें दुश्मन देश की सेना पर इतने बड़े पैमाने पर बमबारी की गई थी।
इंटेलीजेंस का क्या रोल होता है
इंटेलीजेंस का बेहद अहम रोल होता है। किसी भी सैन्य ऑपरेशन में सबसे ज्यादा अहम इंटेलीजेंस होता है। इसी से यह पता चलता है कि दुश्मन के कितने सैनिक कहां बैठे हैं, उनके पास क्या और किस तरह के हथियार हैं? जहां हमला करना है, उसमें दुश्मन की जवाबी कार्रवाई क्या हो सकती है।
इंटेलीजेंस इन्फॉर्मेशन कई तरह से जुटाते हैं
डिफेंस एक्सपर्ट सोढ़ी के अनुसार, इंटेलीजेंस कई तरह से जुटाई जाती हैं। जैसे इंसानों के जरिए कुछ इन्फॉर्मेशन जुटाई जाती हैं। कारगिल युद्ध में लकड़हारों और चरवाहों ने पाकिस्तानी फौजियों के बारे में जरूरी इनपुट दिए थे। इसके अलावा, सैटेलाइट इमेज से भी जानकारी जुटाई जाती है। खुफिया जानकारी जुटाने वाले हेलीकॉप्टर्स से भी जरूरी जानकारी जुटाई जाती है। इन सभी जानकारियों को एकसाथ रखकर उसका एनालिसिस करते हैं। इसके बाद ही काम की जानकारी को फोकस में रखते हुए दुश्मन के खिलाफ किसी ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है।