बस्तर
वर्ष 2024 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही बस्तर के कोर इलाके में अब तक 32 नए कैंप खोले गए हैं नक्सल मोर्चे पर सरकार की बदली रणनीति से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन भी तेज हुए हैं। पुलिस अफसरों की मानें तो जनवरी से लेकर अब तक बस्तर के कोर इलाके में फोर्स की नक्सलियों से 72 मुठभेड़ हो चुकी हैं, जिसमें 137 नक्सली मारे गए हैं। इन दिनों फोर्स का पूरा फोकस इस वक्त अबूझमाड़ पर है।
यह नक्सलियों की अघोषित राजधानी कही जाती है। इसलिए फोर्स यहां नक्सलियों का प्रभाव कम करने में जुटी हुई है। नक्सलियों के ठिकाने पर लगातार फोर्स हमले बोल रही है। हर हमले के बाद नक्सलियों को बड़ा नुकसान हो रहा है। बस्तर के नक्सल इतिहास में कभी इतनी बड़ी संख्या में नक्सली नहीं मारे गए थे जितने पिछले छह महीने के भीतर मारे गए हैं। इससे नक्सलियों और उनके कैडर में दहशत का माहौल है। यही कारण है कि अब तक 6 महीने में 400 से अधिक नक्सलियों ने सरेंडर किया है। आमतौर पर एक साल में औसतन 500 समर्पण हुआ करते थे।
अबूझमाड़ इलाके में अब नहीं रहेगी नक्सलियों की दहशत
नक्सलियों के खिलाफ किसी एक ऑपरेशन में सुरक्षा बलों की यह सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। सुरक्षा बलों के लिए ये मुठभेड़ कई मायनों में अहम है। यह सफल ऑपरेशन जंगल के बीच अबूझमाड़ के अंदर सुरक्षा बलों के प्रवेश का प्रतीक है। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके को नक्सलियों का कोर इलाका माना जाता है। पिछले तीन दशकों से यह इलाका सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना हुआ है। जंगलों और पहाड़ों के बीच का यह इलाका नक्सलियों के लिए अभेद्य गढ़ बन गया। इस मुठभेड़ ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि पिछले कई वारदातों में शामिल नक्सलियों का सफाया हो गया है।
अपने पांच कोर इलाके में सिमटे नक्सली
बस्तर में फोर्स की सक्रियता के चलते नक्सली अब अपने पांच कोर इलाके तक ही सिमटकर रह गए हैं, जिसमें प्रमुख अबूझमाड़, इंद्रावती नेशनल पार्क, बैलाडीला की पहाडिय़ों का तराई वाला इलाका, सुकमा जिले में बासागुड़ा-जगरगुंडा- भेज्जी ट्राएंगल व बीजापुर के पामेड़ इलाके में नक्सलियों की बटालियन नंबर 1 का इलाका शामिल है। अन्य इलाकों में फोर्स की मौजूदगी व कैंप स्थापना के बाद नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ है। अबूझमाड़ व नेशनल पार्क इलाके को अब फोर्स ने जब से टारगेट किया है तब से इस इलाके में नक्सलियों के नई भर्ती शिविर और ट्रेनिंग कैंप आयोजित नहीं हो पा रहे हैं।
2018 से 2023 तक घटनाओं और हताहतों की संख्या
यहां पिछले कुछ वर्षों में बस्तर में नक्सली आतंकी घटनाओं और हताहतों की संख्या को दर्शाने वाला डेटा चार्ट है, जिसे हिंदी में लेबल किया गया है। यह चार्ट 2018 से 2023 तक घटनाओं और हताहतों की संख्या में गिरावट का रुझान दर्शाता है।
गांवों में फैले मिलिशिया कैडर भी हुए कमजोर
नक्सलियों के पीएलजीए के सशस्त्र लड़ाके अब बस्तर के गांवों में फैले मिलिशिया सदस्यों तक अपनी पहुंच नहीं बना पा रहे हैं। गांवों में फोर्स के कैंप स्थापित होने के बाद मिलिशिया सदस्यों की मीटिंग तक लड़ाके नहीं ले पा रहे हैं। अब मिलिशिया कैडर नक्सलियों के प्रभाव से बाहर निकलते दिख रहे हैं। बस्तर में नक्सलियों के लिए यह बड़ा नुकसान है।
अबूझमाड़ से शिफ्ट हो रहे नक्सलियों के टॉप लीडर
अबूझमाड़ की सीमा पांच जिलों में फैली हुई हैं जिसमें कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और बस्तर जिला शामिल है। फोर्स का दबाव जिस तरह से अबूझमाड़ में बढ़ा है उसके बाद से नक्सलियों के टॉप लीडर वहां से लगातार शिफ्ट हो रहे हैं। जिनमें नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के सचिव बसव राजू, एम वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू, पक्का हनुमंतलु उर्फ गणेश उइके और दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सचिव केआरसी रेड्डी उर्फ गुड़सा उसेंडी आदि शामिल हैं।
कैंपों की स्थापना के चलते नक्सली हुए कमजोर
नक्सल मोर्चे पर पुलिस की इस बड़ी सफलता के पीछे नक्सलियों के अभेद इलाकों में नए कैंपों की स्थापना को बड़ी वजह बताया जा रहा है. जिससे नक्सल संगठन की पकड़ अपने आधार इलाकों में कमजोर पड़ती जा रही है. बीजापुर का गंगालूर इलाका जिसे कभी नक्सलियों की अघोषित उपराजधानी भी कहा जाता था, अब यहां मुतवेण्डी, कावड़गांव, डुमरीपालनार के अलावा बीजापुर-सुकमा जिले के सरहदी इलाके टेकुलगुड़म, गुंडेम के साथ दुर्दांत नक्सली हिंड़मा के गढ़ उसके गांव पुवर्ती में फोर्स कैंप बना चुकी है.
बताया जा रहा है कि अब वहां पीएलजीए लड़ाके ही अपना गढ़ बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। अधिकांश नक्सली एमएमसी, एओबी व टीटीके जोन में शिफ्ट होने की जानकारी मिल रही है। दुर्दांत नक्सली हिड़मा के गांव पूवर्ती में भी इसी साल कैंप स्थापित किया गया जो कि बस्तर में नक्सल मोर्चे पर मिली बड़ी कामयाबियों में से एक थी। हिड़मा अब अपना इलाका छोड़ बस्तर के अलग-अलग क्षेत्र में मूवमेंट कर रहा है।
नक्सलियों की इन जंगलों में बसती है जान
अबूझमाड़ की पहाड़ियां और जंगल दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में लगभग 4,000 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई हैं, जो मुख्य रूप से कांकेर के ठीक दक्षिण में नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों को कवर करती हैं। पहाड़ी इलाका, जंगल, सड़क, बुनियादी सुविधाओं का न होना और सशस्त्र विद्रोहियों की उपस्थिति से इस इलाके का एक बड़ा हिस्सा अब तक सरकारी सर्वेक्षण के दायरे से बाहर रहा है। यदि इसके भूभाग की बात करें तो इस इलाके का क्षेत्रफल गोवा जैसे राज्य से बड़ा है। इन जंगलों का उपयोग नक्सलियों द्वारा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से ओडिशा (पूर्व में) आने- जाने के लिए एक गलियारे के रूप में किया जाता है।
अब तक इतने नक्सली मारे गए
2018: 125
2019: 79
2020: 44
2021: 48
2022: 31
2023: 24
2024 में अब तक 137
नक्सल मुक्त बस्तर की ओर बढ़ रहे
बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने की दिशा में हम तेजी से बढ़ रहे हैं। फोर्स को बीते छह महीने में कई बड़ी सफलताएं मिली हैं। नक्सलियों का प्रभाव क्षेत्र सिमटता जा रहा है। नक्सल प्रभाव वाले दो तिहाई क्षेत्र में अब नक्सलियों को जनता ने भी नकार दिया है। नक्सल मुक्त बस्तर का जो लक्ष्य है उसे पाने के लिए हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहे हैं। – सुंदरराज पी. आईजी, बस्तर रेंज
नक्सलियों के खिलाफ जारी रहेगा एक्शन
साल के आखिरी में पिछले साल राज्य में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से कांकेर और पूर्व में नारायणपुर से अबूझमाड़ के दो मुख्य प्रवेश बिंदुओं पर कुछ नए पुलिस कैंप बनाए गए। अबूझमाड़ में एक बेस कैंप स्थापित किया गया और माना जा रहा है कि इससे मौजूदा ऑपरेशन संभव हो सका। कुछ ही दिन पहले एक चुनावी रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत में अब केवल नक्सलवाद की पूंछ बची है, जो छत्तीसगढ़ में है। मैं वादा करता हूं कि अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो तीन साल में नक्सलवाद खत्म कर दूंगा।