न्यूयॉर्क
दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका पर फिर से मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। जून में देश में सर्विसेज एक्टिविटी में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद सबसे तेज गिरावट रही। देश का आईएसएम सर्विसेज पीएमआई इंडेक्स बीते महीने पांच अंक गिरकार 48.8 पर आ गया है। इसके 52.5 रहने की उम्मीद की जा रही थी। बिजनस एक्टिविटी इंडेक्स में गिरावट के कारण ऐसा हुआ। यह इंडेक्स जून में 11.6 अंक की गिरावट के साथ अप्रैल 2020 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। पिछले 30 साल में सर्विस एक्टिविटी में इस तरह की गिरावट केवल मंदी के समय देखी गई है। इसी तरह नए ऑर्डर में 2022 के बाद पहली बार गिरावट आई है। जानकारों का कहना है कि ये मंदी के संकेत हो सकते हैं।
इस बीच लेबर मार्केट में भी कमजोरी दिख रही है। कोरोना काल में अमेरिका ने स्टीम्यूलस दिया था लेकिन अब उसका असर घटता दिख रहा है। इस बीच देश में पिछले 20 महीनों में 19 बार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट आई है। यह महामंदी के बाद के इसका सबसे लंबा दौर है। अतीत में में मंदी के दौर में ही सर्विसेज और मैन्यूफैक्चरिंग इंडेक्स में गिरावट आई है। इससे साफ है कि अमेरिका की इकॉनमी में तेजी से गिरावट आ रही है जो मंदी का संकेत है। उधर अमेरिकी सरकार का खर्च मई में 6.5 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया और बजट डेफिसिट जीडीपी का 6.2 फीसदी हो गया है। बड़े आर्थिक संकट में ही ऐसा होता आया है।
अमेरिका का कर्ज
अमेरिका का कर्ज नए रेकॉर्ड पर पहुंच गया है। अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक फेडरल गवर्नमेंट का कर्ज 34.6 अरब डॉलर पहुंच चुका है जो उसकी जीडीपी का करीब 125% है। पिछले चार साल में देश का कर्ज 47 फीसदी यानी करीब 11 ट्रिलियन डॉलर बढ़ा है। हर टैक्सपेयर पर करीब 267,000 डॉलर यानी करीब 2,21,75,778 रुपये का कर्ज है। अगर यही रफ्तार रही तो अमेरिका का कर्ज 2025 तक 40 ट्रिलियन पहुंचने का अनुमान है। अगर फेड रिजर्व ब्याज दरों में कटौती नहीं करता है तो इस कर्ज पर अमेरिका को सालाना 1.6 ट्रिलियन डॉलर ब्याज देना होगा। माना जा रहा है कि इस साल पहली बार अमेरिका का इंटरेस्ट पेमेंट उसके डिफेंस बजट और मेडिकेयर खर्च से ऊपर पहुंच जाएगा।