नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को किसी तरह के मुकदमे से छूट की संवैधानिकता और दावे को चुनौती दी गई है। पश्चिम बंगाल के राजभवन की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने वहां के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ छेड़खानी का मामला दर्ज कराया था लेकिन राजभवन ने दावा किया था कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को आपराधिक कार्यवाही से छूट मिली हुई है, इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी इस मामले की जांच पर रोक लगा दी थी। पीड़ित महिला ने राजभवन के इस दावे और छूट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार राज्यपालों को दी गई छूट आपराधिक जांच पर रोक नहीं लगा सकती। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले में भारत सरकार को भी पार्टी बनाने की मंजूरी दे दी।
अटॉर्नी जनरल से CJI ने मांगी मदद
इस दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इसे बहुत मह्त्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए देश के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी से इस मामले में मदद करने को कहा। सुनवाई के दौरान महिला याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होने के बावजूद, आपराधिक मामलों में जांच शुरू होनी चाहिए। पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को भी मामले में नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 जांच के खिलाफ बाधा नहीं बन सकता। उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं हो सकता कि जांच ही न हो। साक्ष्य अभी जुटाए जाने चाहिए। इसे अनिश्चित काल के लिए टाला नहीं जा सकता।" उन्होंने पीठ से याचिका में मांगी गई प्रार्थना (सी) और (डी) पर भी नोटिस जारी करने का अनुरोध किया। प्रार्थना (सी) में पश्चिम बंगाल राज्य को राज्य पुलिस तंत्र के माध्यम से मामले की जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जबकि प्रार्थना (डी) में राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग कैसे किया जा सकता है, इस पर दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि किसी पीड़िता को न्याय पाने के लिए क्या संबंधित व्यक्ति के पद से हटने का इंतजार करना होगा? याचिका में यह भी सवाल उठाया गया है कि न्याय में हुई इस देरी के लिए कौन जिम्मेदार होगा और अगर इस बीच पीड़िता को कोई मानसिक परेशानी होती है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
क्या है मामला?
कोलकाता स्थित राजभवन के एक पूर्व संविदा कर्मचारी ने गवर्नर सीवी आनंद बोस और उनके विशेष कार्य अधिकारी (OSD) समेत तीन अन्य कर्मचारियों के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। एफआईआर में गवर्नर बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया है, जबकि कर्मचारियों पर पीड़िता को राजभवन के एक कमरे में गलत तरीके से बंधक बनाने का आरोप है। इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने 24 मई को गवर्नर के ओएसडी और राजभवन के अन्य कर्मचारियों के खिलाफ पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी।बड़ी बात यह है कि गवर्नर बोस ने छेड़छाड़ के आरोपों के संबंध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का एक मामला कलकत्ता हाई कोर्ट में दायर किया है। इस मामले में हाई कोर्ट ने हाल ही में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोक दिया था।