पटाखे का कारोबार करने वाले व्यापारियों के लिए हर साल सरकारी फरमान सबसे बड़ी चड़चन है. उनका कहना है कि पटाखे तैयार करने का काम 8 से 9 महीने तक चलता है. ऐसे में अंतिम मौके पर सरकारी फरमान से उनके कारोबार पर असर पड़ता है.
कुछ खास मौके होते हैं जब पटाखे बेचे और जलाए जाते हैं. लेकिन उन मौकों से पहले ही सरकारी फरमान आने शुरू हो जाते हैं. पटाखे जलाने पर जुर्माना लगा दिया जाता है. प्रदूषण का हवाला देते हुए पटाखे न जलाने की अपील की जाती है. ऐसा न करने कर जेल और जुर्माने की बात होती है. अगर यही सब करना है तो पटाखे बनाने और बेचने वालों को मोटी-मोटी फीस लेकर लाइसेंस क्यों दिए जाते हैं. क्यों सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी को बंद कर दिया जाता है.” पटाखों के थोक कारोबारियों का यह कहना है.
दिल्ली और केन्द्र सरकार के इस कदम से नाराज़ हैं पटाखा कारोबारी
पटाखा कारोबारी अजय गुप्ता का कहना है, “पूरे साल की कवायद के बाद दिवाली और शादी-पार्टी के मौके पर चलाने के लिए पटाखे तैयार हो पाते हैं. लेकिन जब दिवाली पर पटाखों की सबसे ज़्यादा सेल करने का मौका आता है तो सरकारी फरमान आने शुरू हो जाते हैं. दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने सामान्य पटाखे चलाने वालों पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने की बात कही है. केन्द्र सरकार ने प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ जुर्माना और सजा दोनों की बात कही है. इससे पटाखे बेचने और खरीदने वालों में एक डर पैदा हो जाता है. मालूम पड़ा जितने कमाए नहीं उससे ज़्यादा जुर्माने में चले गए. ग्रीन पटाखे बेचने और खरीदने वालों में भी दहशत हो जाती है.”
पूरे साल ऐसे चलती है पटाखे तैयार करने की कवायद
पटाखे का थोक कारोबार करने वाले इलियास अहमद ने बताया, “दिवाली खत्म होते ही पटाखों के लिए ऑर्डर देना शुरू कर देते हैं. पटाखा मशीन से तैयार न होकर हाथ से तैयार होने वाला सामान है तो इसमे वक्त लगता है. 8 से 9 महीने तक पटाखे का उत्पादन होता है. उसके बाद के तीन-चार महीने सप्लाई में लग जाते हैं. लेकिन जैसे ही तैयार पटाखों को बेचने की बारी आती है तो तमाम तरह की बंदिशे और कानून आड़े आ जाते हैं. हम भी चाहते हैं कि प्रदूषण खत्म और कम हो, लेकिन ऐन वक्त पर ही कानून क्यों आते हैं. पहले से क्यों नहीं. अगर यही सब करना है तो लाइसेंस खत्म कर दिजिए. न होंगे पटाखे और न चलेंगे.”