भोपाल
मध्य प्रदेश में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस एकजुट होने की कोशिश में लगी है। मगर कांग्रेस की इन कोशिशों को विवाद और गुटबाजी कमजोर करने में लगी है। कांग्रेस के लिए गुटबाजी और विवाद सुलझाना मुश्किल होता जा रहा है। राज्य में कांग्रेस अपनी ताकत दिखाने के लिए अलग-अलग इलाकों में विरोध प्रदर्शन कर रही है।
इंदौर नगर निगम में हुए घोटाले को लेकर कांग्रेस ने जोरदार प्रदर्शन किया। वहीं दतिया सहित अन्य स्थानों पर भी पार्टी ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। एक तरफ जहां पार्टी अपनी एकजुटता के साथ ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पार्टी के भीतर चल रही खींचतान भी उभर कर सामने आ रही है। इंदौर में एक पेड़ मां के नाम अभियान की शुरुआत हुई और राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इस अभियान में सहयोग मांगने के लिए कांग्रेस के दफ्तर पहुंच गए। कैलाश विजयवर्गीय का कांग्रेस के शहर अध्यक्ष सुरजीत सिंह चड्ढा और ग्रामीण अध्यक्ष सदाशिव यादव ने स्वागत किया।
इस मामले ने तूल पकड़ा और पार्टी की ओर से निलंबन का नोटिस जारी कर दिया गया। इस पर भी कांग्रेस दो फाड़ हो गई। यह मामला थमा नहीं था कि प्रदेश कार्यालय में ऐसे बोर्ड लगा दिए गए जिसने विवाद को जन्म दे दिया। पार्टी ने कार्यालय का समय भी तय कर दिया था। विवाद बढ़ा तो पार्टी की ओर से सफाई दी गई कि यह समय कार्यालय में कर्मचारियों के लिए तय किया गया है। इन दो विवादों के बाद ताजा मामला दतिया जिले का है, जहां पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस आयोजन के बाद कांग्रेस के दो गुट आपस में भिड़ गए और गोली तक चल गई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में कांग्रेस आपसी गुटबाजी और खींचतान के कारण कमजोर हुई है। लगातार हार के बावजूद भी कांग्रेस के नेता सीख लेने को तैयार नहीं है। अब तो गुटबाजी और विवाद पार्टी के लिए रोग का रूप ले चुके हैं। सवाल एक ही है क्या कांग्रेस इससे खुद को बाहर निकल पाएगी या और ग्रसित हो जाएगी।