बैंकॉकः
म्यांमार से एक बार फिर रोहिंग्याओं को लेकर एक दर्दनाक खबर सामने आई है. देश छोड़कर बांग्लादेश भाग रहे रोहिंग्याओं पर ड्रोन के जरिए हमला किया गया है. इसमें 200 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबर है. इसमें महिलाएं, बच्चे और पूरा-पूरा परिवार शामिल है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चश्मदीदों ने बताया कि लोग अपनों की तलाश के लिए लाशों के ढेर को उलटते-पलटते दिखे. गवाहों, कार्यकर्ताओं और एक राजनयिक ने सोमवार को हुए इस ड्रोन हमले का जिक्र करते हुए बताया कि ये लोग हमला पड़ोसी देश बांग्लादेश से लगते बॉर्डर पर हुआ.
अधिकारियों ने इसे रखाइन प्रांत में हुआ सबसे खतरनाक हमला करार देते हुए बताया कि इसमें एक गर्भवती महिला और उसकी 2 साल की बेटी की भी मौत हो गई. इस हमले के लिए मिलिशिया और म्यांमार की सेना ने एक-दूसरे पर आरोप लगाया. आरोप है कि ये हमला तब हुआ जब बांग्लादेश की सीमा पर लोग उस पार जाने का इंतजार कर रहे थे.
कीचड़ में सने दिख रहे हैं शव
रिपोर्ट के अनुसार,सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में कीचड़ भरी जमीन पर शवों के ढेर बिखरे हुए दिख रहे हैं और उनके आसपास पड़े हुए उनके सूटकेस और बैकपैक दिखाई दे रहे हैं. जीवित बचे तीन लोगों ने कहा कि 200 से अधिक लोग मारे गए हैं, जबकि एक अन्य शख्स ने कहा कि 70 से अधिक लोगों की मौत हुई है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह हमला म्यांमार के तटीय शहर माउंगडॉ के ठीक बाहर हुआ. एक गवाह, 35 वर्षीय मोहम्मद इलियास ने कहा कि उनकी गर्भवती पत्नी और 2 वर्षीय बेटी हमले में घायल हो गईं और बाद में उनकी मृत्यु हो गई. इलियास ने बताया कि जब ड्रोन ने भीड़ पर हमला करना शुरू किया तो वह उनके साथ समुद्र तट पर खड़ा था.
कौन हैं रोहिंग्या मुस्लिम
दरअसल, रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही चला आ रहा है. बताया जाता है कि रखाइन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं. ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था. 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया.
इस दौरान ब्रिटिश शासकों ने बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान लाना शुरू किया. इस तरह म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई.बांग्लादेश से जाकर रखाइन में बसे ये वही लोग थे जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है. रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया. इस कानून के तहत रोहंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई. तब से ये रोहिंग्या मुस्लिम कई देशों में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं.