भोपाल
भोपाल। प्रदेश में जिन कर्मचारियों को पद नहीं होने या अन्य कारण से पात्र होने के बाद भी पदोन्नति नहीं मिल पाती है, उन्हें क्रमोन्नति के माध्यम से उच्चतर वेतनमान का लाभ दिया जाता है। कई बार पारिवारिक परिस्थिति या अन्य कारण से कर्मचारी पदोन्नति लेने से इन्कार कर देते हैं।
ऐसे कर्मचारियों को अब सरकार उच्चतर वेतनमान का लाभ नहीं देगी। इसके लिए 22 वर्ष बाद 2002 के क्रमोन्नति संबंधी निर्देश में संशोधन किया गया है। हालांकि, अब क्रमोन्नति के स्थान पर समयमान वेतनमान की व्यवस्था लागू हो चुकी है। प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के साथ क्रमोन्नति के निर्देश भी जारी किए गए थे।
इसमें यह प्रावधान था कि ऐसे कर्मचारी, जिन्हें क्रमोन्नति का लाभ दिया गया है, उनको जब उच्च पद पर पदोन्नत किया जाता है और वह ऐसी पदोन्नति लेने से इन्कार करता है तो उसे दिए गए क्रमोन्नत वेतनमान का लाभ भी समाप्त कर दिया जाएगा।
इसके साथ ही पदोन्नति आदेश में भी इसका उल्लेख किया जाएगा कि यदि कर्मचारी पदोन्नति छोड़ता है, उसे पहले दिए गए क्रमोन्नत वेतनमान का लाभ भी समाप्त कर दिया जाएगा।
चूंकि, वर्ष 2016 से पदोन्नति बंद हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए सरकार ने क्रमोन्नति नियम में संशोधन कर दिया है। पुराने प्रकरणों में जो निर्णय हो चुका है, उन पर संशोधित निर्देश के अनुक्रम में विचार नहीं होगा।
सामान्य प्रशासन विभाग का आदेश स्पष्ट नहीं
नायक मंत्रालयीन अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि सामान्य प्रशासन विभाग का आदेश अस्पष्ट है। पहली बात तो यह की क्रमोन्नति योजना के स्थान पर समयमान वेतनमान योजना प्रभावी है।
कई बार कर्मचारी को तात्कालिक परिस्थितियों के कारण पदोन्नति छोड़ने के लिए विवश होना पड़ता है। परिस्थितियां अनुकूल होने पर तथा पात्रता पूरी करने पर उच्चतर वेतनमान मिलने का अवसर बरकरार रहना चाहिए।
वर्तमान परिस्थिति के आधार पर भविष्य के अवसर समाप्त करना न्यायसंगत नहीं है। सरकार को इस प्रविधान पर पुनर्विचार करना चाहिए।