नई दिल्ली
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से राज्य में बलात्कार एवं यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों के निपटारे के लिए समर्पित विशेष त्वरित अदालतों (एफटीएससी) की स्थापना करने और उनके संचालन में तेजी लाने का फिर से आग्रह किया।
देवी ने 30 अगस्त को लिखे पत्र में राज्य की मौजूदा त्वरित अदालतों (एफटीसी) को लेकर चिंता व्यक्त की और मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह सुनिश्चित करें कि जघन्य अपराधों के पीड़ितों को शीघ्र एवं उचित न्याय मिले।
केंद्रीय मंत्री ने इससे पहले 25 अगस्त को उनके द्वारा भेजे गए पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों के लिए कड़े कानून बनाने और कठोर सजा देने की आवश्यकता पर बल दिया था।
मंत्री के 25 अगस्त के पत्र के बाद ममता द्वारा लिखे पत्र का जवाब देते हुए देवी ने कहा कि हालांकि पश्चिम बंगाल ने 88 एफटीसी स्थापित की हैं, लेकिन ये केंद्र सरकार की योजना के तहत अनुशंसित एफटीएससी के समान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में एफटीसी केवल बलात्कार और पॉक्सो मामलों के लिए समर्पित होने के बजाय दीवानी विवादों सहित अन्य मामलों को संभालती हैं।
देवी ने राज्य की न्याय प्रणाली में लंबित मामलों की अत्यधिक संख्या का जिक्र किया और कहा कि 30 जून 2024 तक एफटीसी में 81,000 से अधिक मामले लंबित हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि राज्य ने बलात्कार और पॉक्सो के 48,600 मामलों के लंबित होने के बावजूद बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त 11 एफटीएससी का संचालन अभी तक शुरू नहीं किया है।
मंत्री ने इन अदालतों के संबंध में राज्य द्वारा दी गई जानकारी को गलत बताया और कहा कि यह देरी को छिपाने का प्रयास है।
अपने पत्र में देवी ने एफटीएससी में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के मुद्दे का भी जिक्र किया। उन्होंने दोहराया कि मौजूदा दिशा-निर्देश इन अदालतों में न्यायिक अधिकारियों की स्थायी नियुक्ति को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि एफटीएससी में ऐसे न्यायिक अधिकारियों को शामिल किया जाता है, जो विशेष रूप से बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के तहत आने वाले अपराधों के मामलों पर काम करते हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि ऐसे पदों के लिए कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए।
देवी ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहा कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में पहले से ही कठोर दंड का प्रावधान है, जिसमें बलात्कार के लिए न्यूनतम 10 वर्ष का कठोर कारावास शामिल है, जिसे अपराध की गंभीरता के आधार पर आजीवन कारावास या यहां तक कि मृत्युदंड तक में बदला जा सकता है।
उन्होंने ऐसे मामलों की समय पर जांच और सुनवाई के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के प्रावधानों पर भी प्रकाश डाला, जिसमें अपराध के दो महीने के भीतर अनिवार्य फॉरेंसिक जांच का प्रावधान शामिल है।
देवी ने अपने पत्र के अंत में पश्चिम बंगाल सरकार से केंद्रीय कानून को पूरी तरह लागू करने और मामलों को उचित तरीके से निपटाने के लिए सक्रिय कदम उठाने का आग्रह किया।
उन्होंने महिलाओं और लड़कियों के लिए हिंसा और भेदभाव से मुक्त एक सुरक्षित और लैंगिक समानता वाला समाज बनाने के महत्व पर जोर दिया। पत्र में संवेदनशील और गंभीर आपराधिक मामलों, खासकर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों से निपटने को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच जारी तनाव को रेखांकित किया गया।
मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखे एक पत्र में कहा है कि राज्य में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए केंद्रीय कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
श्रीमती अन्नपूर्णा देवी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि दुष्कर्म और महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के शीघ्र निपटान के लिए केंद्रीय कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। केंद्रीय मंत्री का सुबनर्जी को कोलकाता दुष्कर्म मामले के संदर्भ यह दूसरा पत्र है। इससे पहले सुबनर्जी केंद्रीय कानून को सख्त बनाने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दो पत्र लिख चुकी हैं।
श्रीमती अन्नपूर्णा देवी ने दूसरे पत्र का जवाब देते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा प्रदान किये गये आंकड़े तथ्यात्मक रूप से गलत है और राज्य की ओर से “देरी को छिपाने का प्रयास” है। उन्होंने कहा कि यौन अपराध और दुष्कर्म के मामलों का तेजी से निपटान करने के लिए बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम – पोक्सो के प्रावधानों के अंतर्गत त्वरित न्यायालय स्थापित किए जाने चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री से यह सुनिश्चित करने को कहा कि न्याय तेजी से और कुशलता से दिया जाए।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए श्रीमती अन्नपूर्णा देवी
ने बताया कि भारतीय न्याय संहिता में पहले से ही दुष्कर्म के लिए न्यूनतम 10 साल के कठोर कारावास सहित कठोर दंड का प्रावधान है, जिसे अपराध की गंभीरता के आधार पर आजीवन कारावास या यहां तक कि मृत्युदंड तक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसे मामलों की समय पर जांच और सुनवाई के लिए प्रावधानों का भी उल्लेख किया।