बलूचिस्तान
पाकिस्तान (Pakistan) के बलूचिस्तान प्रांत में कई ठिकानों पर हाल ही में हुए हमले इलाके में बढ़ रही उठापटक की तरफ इशारा हैं. पिछले दिनों मार्च के दौरान बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह पर कुछ हथियारबंद लोग ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी (GPA) के परिसर में घुसे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. पाकिस्तानी अखबारों की रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि स्थानीय सुरक्षाकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई में आठ हमलावरों को ढेर कर दिया. इस हमले की जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली थी. ये हमले बलूचिस्तान के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वाली समस्याओं और नासूर बन चुके हालात का नतीजा थे. हमलों का एक प्रमुख कारण CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) की इच्छा है, जो बलूचिस्तान के जरिए झिंजियांग से ग्वादर तक एक कम्यूनिकेशन कॉरिडोर चलाने की थी, जिसका प्रांत के निवासियों ने समर्थन नहीं किया.
पाकिस्तान को मिलता रहा है चीन का समर्थन
दशकों से चीन का करीबी सहयोगी रहा पाकिस्तान अपनी कई समस्याओं के समाधान के लिए चीन की उदारता का इस्तेमाल करना चाहता है. जबकि उनके भारत-केंद्रित एजेंडे में कई समानताएं हैं. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि चीन, भारत के खिलाफ उसके साथ जुड़ जाएगा. 1947 के बाद पर नजर दौड़ाने से पता चलता है कि पाकिस्तान को चीन का कूटनीतिक और सैन्य समर्थन मिलता रहा है.
साल 1963 में एक दिखावटी सीमा समझौते के आधार पर कश्मीर की शक्सगाम घाटी को चीन को सौंपने से लेकर सीपीईसी की मेजबानी और उत्तरी गिलगित पर नियंत्रण को लगभग सौंपने तक, चीन को पाकिस्तान द्वारा दिए गए रणनीतिक उपहारों की सूची लंबी है.
ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान ने ज्यादातर सुरक्षा और विकास संबंधी प्राथमिकताओं के आधार पर गठबंधन चुने हैं. अमेरिका के साथ देश के जुड़ाव ने उसे कई फायदे दिए हैं. हालांकि, अफगानिस्तान में फायदा उठाने और रणनीतिक गहराई हासिल करने के लिए गुप्त संस्थाओं का उपयोग करने की इसकी दोषपूर्ण दृष्टि उजागर हो गई है. नतीजतन, अफगानिस्तान सहित पूरे इलाके में असुरक्षा फैली हुई है. अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली सहयोगियों की तलाश में, पाकिस्तान ने पश्चिमी प्रांतों और उनके लोगों को एकीकृत करने की उपेक्षा की है.
पाकिस्तान ने हमेशा सुलह पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय प्रतिरोध आंदोलनों से निपटने के लिए सैन्य बल का उपयोग करना पसंद किया है. इस वजह से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और बलूच आंदोलन पाकिस्तानी दृष्टिकोण का विरोध करने के लिए एकजुट हो गए हैं.
पाकिस्तान में हिंसा से हुई हजारों मौतें
साल 2009 में पाकिस्तान में आंतरिक संघर्ष की वजह से 11,317 मौतें हुईं. 2019 में यह संख्या घटकर 365 हो गई. 2020 की शुरुआत से, हिंसा और मौतों की संख्या में साफ तौर से बढ़ोतरी दर्ज की गई और 2023 में यह तादाद 1,502 पर पहुंच गई है. इस साल यह संख्या 1,240 है.
साल 2023 में, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में पाकिस्तान में सभी मौतों का 90 फीसदी और सभी हमलों का 84 फीसदी हिस्सा होगा. खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में 2021 की तुलना में क्रमशः 54 प्रतिशत और 63 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. मौजूदा साल में अब तक पाकिस्तान में सभी मौतों का 92 फीसदी इन दो इलाकों में हुआ है.
क्या कहते हैं हाल के दिनों में हुए हमले?
अकबर बुगती की पुण्यतिथि पर हाल ही में हुए हमलों ने एक अलग संदेश दिया है. सुरक्षा और पुलिसकर्मियों पर क्रूर हमलों से लेकर बलूचिस्तान के बोलन में बुनियादी ढांचे पर हमला और नागरिकों को जातीय रूप से निशाना बनाना.
कब-कब हुए बड़े हमले?
– इसी साल अप्रैल में, बलूचिस्तान के नोशकी शहर के पास आतंकवादियों ने पंजाबी यात्रियों के पहचान पत्र की जांच करने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी थी.
– पिछले अक्टूबर में केच जिले में छह पंजाबी मजदूरों को मार दिया गया, जिसे खुद स्थानीय अधिकारियों ने टारगेट किलिंग माना था.
– साल 2015 में कुछ बंदूकधारियों ने तुर्बत के पास मजदूरों के एक कैंप पर अटैक कर 20 लोगों को मार दिया, जो सभी पंजाब और सिंध से थे.
Pakistan के बलूचिस्तान में खूनी खेल क्यों?
मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में खूनी खेल के पीछे बलूचों की स्वतंत्र देश की मांग है. बलूचों का आरोप है कि 1947 में भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान पिछले 76 सालों से बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा जमाया हुआ है. मई 2024 में बलूचिस्तान की आजादी के लिए बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) के डॉ अल्लाह नजर बलूच ने ईरान, अफगानिस्तान, भारत और मध्य-पूर्व देशों से मदद की अपील की थी. डॉ अल्लाह नजर बलूच ने कहा था कि बलूचिस्तान की आजादी के मुद्दे पर समर्थन करने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए. बीएलएफ के अलावा बीएलए समेत फ्रीलांस जिहादियों की ओर से भी पाकिस्तान के कब्जे से बलूचिस्तान को आजादी दिलाने की मांग की जा रही है. बीते 25-26 अगस्त के हमले के बाद पाकिस्तान गृहमंत्री मोहसिन नकवी ने अपने एक बयान में कहा था कि प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी एक अलग आजाद देश बनाना चाहता है.
बलूचिस्तान में चीनी अधिकारियों पर हमले क्यों हो रहे?
मीडिया की रिपोर्ट्स की मानें, तो बलूचिस्तान की आजादी के समर्थक जिहादी समूह पाकिस्तानी सेना के जवान और चीनी अधिकारियों पर हमले कर रहे हैं. पाकिस्तान के साथ हुए समझौते के मुताबिक, चीन पाकिस्तान में साल 2015 से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना पर काम शुरू कर चुका है. बलूचों का मानना है कि चीन के कंधों पर बंदूक रखकर पाकिस्तान इस आर्थिक गलियारे के जरिए बलूचिस्तान में अपने दबदबे को मजबूत करना चाहता है. बलूचों की नजर में उनकी आजादी में आर्थिक गलियारे के जरिए चीन रोड़ा अटकाता दिखाई दे रहा है. यही कारण है कि आजादी समर्थक बलूच जिहादी पाकिस्तानी सैनिकों के साथ-साथ चीनी अधिकारियों पर हमले कर रहे हैं.
क्यों आजादी चाहते हैं बलूच?
बलूचिस्तान में बलूच आतंकवादी पंजाबियों को क्यों निशाना बनाते हैं? इसका जवाब पाकिस्तान के इतिहास में है. लेकिन इससे पहले जानते हैं कि बलूच कौन हैं और क्यों भड़के रहते हैं.
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा है, जहां बलूच मेजोरिटी है. ये वे लोग हैं, जिनकी अपनी अलग बोली और कल्चर है. लंबे समय से बलूच पाकिस्तान से अलग अपने देश की मांग करते रहे. यानी कहा जाए तो ये एक तरह का अलगाववादी आंदोलन है, जो पाकिस्तान में फलते-फूलते कई चरमपंथी आंदोलनों में से एक है. अफगानिस्तान से सटे हुए इस प्रांत के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान ने हमेशा उससे भेदभाव किया.
– बलूचिस्तान के पास पूरे देश का 40% से ज्यादा गैस प्रोडक्शन होता है. ये सूबा कॉपर, गोल्ड से भी समृद्ध है. पाकिस्तान इसका फायदा तो लेता है, लेकिन बलूचिस्तान की इकनॉमी खराब ही रही.
– बलूच लोगों की भाषा और कल्चर बाकी पाकिस्तान से अलग है. वे बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उर्दू मिली पंजाबी चलती है. बलूचियों को डर है कि पाकिस्तान उनकी भाषा भी खत्म कर देगा, जैसी कोशिश वो बांग्लादेश के साथ कर चुका.
– सबसे बड़ा प्रांत होने के बावजूद इस्लामाबाद की राजनीति और मिलिट्री में इनकी जगह नहीं के बराबर है.
– पाक सरकार पर बलूच ह्यूमन राइट्स को खत्म करने का आरोप लगाते रहे. बलूचिस्तान के सपोर्टर अक्सर गायब हो जाते हैं, या फिर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग के शिकार बनते हैं. एक एनजीओ बलूच मिसिंग पर्सन्स के अनुसार, साल 2001 से 2017 के बीच पांच हजार से ज्यादा बलूच लापता हैं.