नई दिल्ली
दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने वाला सेक्शन 498A देश में सबसे ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाला कानून है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह बात कही। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने एक वैवाहिक मामले में विवाद की सुनवाई करते हुए यह बात कही। जस्टिस गवई ने गुजारा भत्ते पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में आजादी पाना ही सबसे अच्छी चीज है। अपनी इस टिप्पणी को विस्तार देते हुए जस्टिस गवई ने एक केस को भी याद किया।
उन्होंने कहा कि एक मामला ऐसा भी आया था, जब पति एक दिन भी पत्नी के साथ नहीं रहा। लेकिन जब वे अलग हुए तो 50 लाख रुपये की रकम उसे पत्नी को देनी पड़ी। जस्टिस गवई ने कहा, 'मैंने नागपुर में एक केस देखा था। उस मामले में युवक अमेरिका जाकर बस गया। उसकी शादी एक दिन भी नहीं चल पाई, लेकिन पत्नी को केस चलने पर 50 लाख रुपये की रकम देनी पड़ गई। मैं तो खुलकर कहता रहा हूं कि घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के कानून का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल होता है। मेरी बात से शायद आप लोग सहमत होंगे।'
सेक्शन 498A को लेकर लंबे समय से चर्चा रही है। इस कानून के आलोचकों का कहना रहा है कि अकसर महिला के परिवार वाले इस कानून का बेजा इस्तेमाल करते हैं। रिश्ते खराब होने पर पति और उसके परिवार वालों को फंसाने की धमकी दी जाती है। कई बार झूठे मुकदमे दर्ज कराए जाते हैं और बाद में फिर सेटलमेंट होते हैं। इन मामलों को लेकर अदालतें भी सवाल उठाती रही हैं। बीते साल सेक्शन 498A को लेकर दर्ज एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी तीखी टिप्पणी की थी। अदालत का कहना था कि आखिर इस केस में पति के दादा-दादी और घर में बीमार पड़े परिजनों तक को क्यों घसीट लिया गया।
यही नहीं घरेलू हिंसा के ही एक और मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे केसों में पति के दोस्त को नहीं फंसाया जा सकता। जस्टिस अनीस कुमार गुप्ता की अदालत ने कहा कि इस कानून में पति और उसके रिश्तेदारों की ओर से उत्पीड़न पर केस का प्रावधान है। पति के दोस्त को इस दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता।