नई दिल्ली
वैवाहिक संबंधों में रेप को लेकर कोई नियम बनना चाहिए अथवा नहीं। इसे लेकर केंद्र सरकार की ओर से कोई राय जाहिर नहीं की गई है। इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे बढ़ने का फैसला लिया है। अदालत का कहना है कि वह इस बात पर विचार करेगी कि मैरिटल रेप के आरोपों में पति को कानूनी प्रक्रिया से छूट मिलनी चाहिए अथवा नहीं। कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में पूरी तरह से कानूनी मसले को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ेंगे। भले ही सरकार इस मामले में कोई स्टैंड न ले। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, 'यह कानून का मामला है। यदि उन्होंने एफिडेविट नहीं दिया है, तब भी उन्हें कानूनी पहलू पर बात करनी होगा।'
अदालत की यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की ओर से उठाई गई उस मांग के बाद आया है कि इस पर जल्दी सुनवाई की जाएगी। वहीं एक अन्य वकील ने कहा कि केंद्र सरकार ने अब तक एफिडेविट दाखिल नहीं किया है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह कानूनी सवाल है। इस मसले की हम सुनवाई करेंगे और विचार करेंगे कि मैरिटल रेप पर कानून होना चाहिए या नहीं। इस मामले पर बुधवार को ही सुनवाई होनी थी, लेकिन दूसरे मामलों के लंबित होने के चलते इसे टाल दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट फिलहाल उन याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है, जिसमें आईपीसी के सेक्शन 375 के एक प्रावधान को चुनौती दी गई है। इन याचिकाओं में सवाल उठाया गया है कि सेक्शन 375 के तहत वैवाहिक संबंधों में रेप के आरोपों से पति को छूट दी गई है, जो गलत है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि रेप में अंतर नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं को पति द्वारा भी रेप का शिकार होना पड़ता है। इस मामले में मई 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट का भी एक फैसला आया था, जिसमें बेंच एकमत नहीं थी।