नई दिल्ली
वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव को केंद्र ने मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव के तहत, भारत में सभी चुनावों को एक ही समय पर कराने की योजना बनाई गई है। अब इस प्रस्ताव को संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक के रूप में पेश किया जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने इस प्रस्ताव पर सिफारिश की थी। समिति ने 62 राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा किया, जिनमें से 32 दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया।
समिति ने 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दी गई। वन नेशन-वन इलेक्शन के लागू होने के लिए संविधान संशोधन और कानून में बदलाव करना होगा। इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है। केंद्र सरकार को इस प्रक्रिया में राज्यसभा और लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना होगा। लोकसभा में 543 में से 362 सांसदों का समर्थन आवश्यक होगा, जबकि राज्यसभा में 245 में से 164 सांसदों की जरूरत होगी।
वर्तमान में, भाजपा और एनडीए के सहयोगी दल इस प्रस्ताव के समर्थन में हैं। इनमें आजसू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान), जनता दल (यूनाइटेड), नेशनल पीपुल्स पार्टी, शिवसेना, और कई अन्य दल शामिल हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), माकपा, बसपा, और अन्य विपक्षी दल इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि यह प्रस्ताव लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर सकता है और चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी ला सकता है।
सरकार के लिए इस प्रस्ताव को दोनों सदनों से पास कराना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। विपक्ष को मनाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, और संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू को जिम्मेदारी सौंपी गई है। ये मंत्री विपक्षी दलों से चर्चा कर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास करेंगे। वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव के समर्थन में जिन दलों ने सहमति जताई है, उनमें बीजेडी, एआईएडीएमके, अकाली दल, मिजो नेशनल फ्रंट, और अन्य शामिल हैं। वहीं, सरकार को विपक्ष की चिंताओं और विरोध को भी ध्यान में रखते हुए कदम उठाने होंगे। इस प्रस्ताव को लेकर सरकार का कहना है कि इससे चुनावी खर्चों में कमी आएगी और प्रशासनिक कामकाज में भी सुधार होगा।