राजनीती

कृषि कानूनों पर मेरे विचार व्यक्तिगत हैं : कंगना रनौत

नई दिल्ली
बॉलीवुड अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत ने निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों को फिर से लागू करने को लेकर टिप्पणी की थी। इस वजह से उन्हें अपनी पार्टी से भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इसी बीच, कंगना रनौत ने बुधवार को स्पष्ट किया कि उनके विचार निजी थे और वह पार्टी के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। कंगना रनौत ने बुधवार को भाजपा नेता गौरव भाटिया के उस सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि कंगना की ओर से कृषि कानूनों पर दिया गया बयान उनका व्यक्तिगत विचार है। वह भाजपा की ओर से ऐसा बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं।

गौरव भाटिया के एक्स पोस्ट को कोट करते हुए कंगना रनौत ने लिखा, “बिल्कुल, कृषि कानूनों पर मेरे विचार व्यक्तिगत हैं। वह उन बिलों पर पार्टी के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। धन्यवाद।” दरअसल, गौरव भाटिया ने एक्स पर पोस्ट में कहा था कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कृषि बिलों पर कंगना रनौत के बयान को भाजपा का समर्थन नहीं है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह बयान उनका निजी बयान है। कंगना रनौत भाजपा की ओर से ऐसा बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं और यह कृषि बिलों पर भाजपा के दृष्टिकोण को नहीं दर्शाता है। हम इस बयान को अस्वीकार करते हैं।

कंगना ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था, “मुझे पता है कि यह बयान विवादास्पद हो सकता है, लेकिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए। किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए।” उन्होंने कहा था कि तीनों कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे, लेकिन कुछ राज्यों में किसान समूहों के विरोध के मद्देनजर केंद्र ने इन्हें निरस्त कर दिया। किसान देश के विकास में ताकत का स्तंभ हैं। मैं उनसे अपील करना चाहती हूं कि वे अपने भले के लिए कानूनों की वापसी की मांग करें।

एक दिन पहले, कांग्रेस ने कृषि कानूनों पर कंगना की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा था कि सत्तारूढ़ पार्टी 2021 में निरस्त किए गए तीन कानूनों को वापस लाने की कोशिश कर रही है, हरियाणा इसका करारा जवाब देगा। कांग्रेस ने एक्स पर कंगना का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि कृषि कानूनों को फिर से लागू किया जाना चाहिए।

बता दें कि पिछले महीने ही कंगना को भाजपा ने उस टिप्पणी के लिए चेतावनी दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन से भारत में “बांग्लादेश जैसी स्थिति” पैदा हो सकती है। उनकी यह टिप्पणी बांग्लादेश की नेता शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और उनके खिलाफ छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के कारण भारत भागने के लिए मजबूर होने के कुछ दिनों बाद आई थी।

 

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