चंडीगढ़
हरियाणा के सबसे चर्चित मामले राबर्ट वाड्रा लैंड डील मामला सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए वोटों वाली दुधारू गायब साबित हो रहा है। इसी मुद्दे को भुनाकर बीजेपी साल 2014 में हरियाणा की सत्ता पर काबिज हुई थी। अपने 10 साल के कार्यकाल में इस मामले में तमाम जांच और अथक प्रयासों के बावजूद जब कुछ नहीं मिला तो रॉबर्ट वाड्रा समेत पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी क्लीन चिट दे दी। अब जब हरियाणा से विदाई की नौबत आई तो भाजपा फिर वाड्रा लैंड डील मामले को जोरशोर से भुना रही है। ताकि लोगों को भ्रमित करके उनके वोट हथियाए जा सकें।
खास बात यह है कि हरियाणा के तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर ने पिछले दिनों राजस्थान की राजधानी जयपुर में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक सवाल के जवाब में खुद कहा था कि वाड्रा लैंड डील मामले में प्राथमिक रूप से कुछ भी गलत नहीं निकला है। बीजेपी ने इस प्रकरण की न्यायिक जांच इस उद्देश्य से नहीं कराई थी कि किसी को जेल भेजना है। बीजेपी केवल इस मामले का सच जनता के सामने लाना चाहती थी।
इससे पहले 5 मई, 2014 को हिसार की जनसभा में तब पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने इस घोटाले को जोरशोर से उठाते हुए यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को इंगित करते हुए कहा था कि मां-बेटे और दामाद से एक-एक इंच जमीन का हिसाब लिया जाएगा। एक दशक के शासन में भी न तो मोदी इस मामले में कुछ कर पाए और न ही हरियाणा में बीजेपी सरकार। बल्कि हुड्डा और वाड्रा को क्लीनचिट दे दी।
राबर्ट वाड्रा से लैंड डील करने वाली डीएलएफ से बीजेपी ने लिया 170 करोड़ का चंदाः
वाड्रा लैंड डील मामले की और भी रोचक कहानी यह है कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी से लैंड डील करने वाली कंपनी डीएलएफ से बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉंड के रूप में 170 करोड़ रुपए का ऑफिशियल चंदा लिया है। जबकि हरियाणा की बीजेपी सरकार के सीएमओ में कार्यरत और तत्कालीन सीएम मनोहर लाल के करीबियों ने बैकडोर मेंं डीएलएफ से मोटे फायदे लिए जो अलग हैं। इसीलिए डीएलएफ और वाड्रा लैंड डील में न्यायिक आयोग के माध्यम से क्लीनचिट दी गई थी। अब इस मामले का असर वायनाड के इलेक्शन में भी पड़ने की संभावना है, जहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी प्रत्याशी हैं।
मोदी-बीजेपी फिर जोरशोर से उठा रहे वाड्रा लैंड डील मामलाः
अगर 2024 के विधानसभा चुनाव के प्रचाार की बात करें तो बीजेपी का प्रचार मुख्य रूप से हरियाणा में वाड्रा लैंड लीड और मिर्चपुर कांड के इर्द-गिर्द ही रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह औऱ तमाम भाजपा नेता दलाल, दामाद आदि का भाषणों में जिक्र करके किसानों को उनकी जमीनें छिनने का भय दिखाकर वोट मांग रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को भू माफिया के तौर पर पेश करते हुए वीडियो प्रचारित किए जा रहे हैं। एक वीडियो पर तो कांग्रेस की ओर से चुनाव आयोग में आपत्ति भी दर्ज कराई गई है। इसी तरह के गाने प्रचारित किए जा रहे हैं। यहां तक कि अखबारों में दिए गए विज्ञापनों में भी वाड्रा लैंड डील का जिक्र किया जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर एक दशक से भी पुराने मामलों को चुनाव में भुनाकर बीजेपी मतदाताओं को क्या याद दिलाना चाह रही है।
बीजेपी क्यों नहीं दे रही जवाब 10 साल में क्यों कुछ नहीं कियाः
हरियाणा के विधानसभा में चुनाव में आम मतदाता यह जानने को उत्सुक है कि हरियाणा और केंद्र में 10 साल तक शासन करने के बावजूद वाड्रा लैंड डील मामले में बीजेपी प्रभावी कार्रवाई करके किसानों को उनकी जमीनें वापस क्यों नहीं दिलवा पाई। मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने वाड्रा लैंड डील मामले में आखिर हुड्डा को क्लीनचिट क्यों दी। साल 2022 तक सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी का बतौर कॉलोनाइजर्स लाइसेंस क्यों प्रभावी रहा। अब इन मुद्दों को चुनाव में उठाना क्या भाजपा की दोगली नीति नहीं है।
जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए नुकसान को क्या भुला पाएंगे हरियाणा के लोगः
विधानसभा चुनाव के दौरान आम जनमानस के बीच यह सवाल भी सुर्खियों में है कि आम तौर पर गैर जाट की राजनीति करने वाली बीजेपी के शासन यानि मनोहर लाल खट्टर सरकार में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हरियाणा में जिस तरह का तांडव हुआ। लोगों की चुन-चुन कर न केवल संपत्तियां जलाई गईं बल्कि महिलाओं से बलात्कार तक हुए। मुरथल कांड को अभी तक लोग भूले नहीं है। उस दौरान क्या भाजपा ने गैर जाट समुदाय के लोगों को पूरी तरह सुरक्षा मुहैया कराई थी। जबकि बीजेपी के मंत्रियों तक ने अपने नुकसान की भरपाई का पूरा मुआवजा सरकार से उठाया था।
हुड्डा सरकार में आईएएस अशोक खेमका ने उठाया था वाड्रा लैंड डील मामलाः
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012-13 के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में हरियाणा के चर्चित आईएएस अशोक खेमका ने वाड्रा लैंड डील मामले का खुलासा किया था। उस समय यह मुद्दा देश-विदेश के अखबारों औऱ मीडिया चैनलों की सुर्खियों में छाया रहा था। क्योंकि आईएएस खेमका ने वर्ष 2012 में डीएलएफ और रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के बीच हुई 3.5 एकड़ जमीन ट्रांसफर करने वाली डील रद्द कर दी थी।